श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
सप्तपञ्चाश: सर्गः
सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना, उनके मुख से श्रीराम का संदेश सुनकर पुरवासियों
का विलाप, राजा दशरथ और कौसल्या की मूर्च्छा तथा अंत:पुर की रानियों का आर्तनाद
गंगा के दक्षिण तट पर जब,
राम, लक्ष्मण, सीता उतरे
दुख से व्याकुल होकर गुह,
बातें करता रहा सुमन्त्र से
तत्पश्चात लिए उन्हें वह, चला
गया निज घर अपने
श्रीराम के समाचार सब, आ गुप्तचरों
ने उसे कहे
सुन सब विवरण चले सुमन्त्र,
जोत के घोड़ों को अपने
अति दुखी अंतर था उनका, बहुत
शीघ्रता पूर्ण चले
श्रृंगवेरपुर से लौटकर, अगले
दिन पहुंचे अयोध्या
थी आनंद शून्य पुरी वह, एक
शब्द न वहाँ गूँजता
मानो सूनी हुई जनों से,
नीरवता ऐसी छायी
दशा देख अयोध्या की यह,
उनके उर में चिंता आयी
श्रीराम के विरह के दुःख
से, कहीं सभी न दग्ध हुए
राजा सहित निवासी सारे, पशु,
पक्षी व हाथी, घोड़े
किया प्रवेश नगर द्वार से, चिंता
मन में यही लिए
देख उन्हें सब दौड़े आये,
राम कहाँ हैं, ये पूछें
गंगा तट तक गया राम संग, कहा
सुमन्त्र ने उन लोगों से
लौट जाने की दी आज्ञा, आया
हूँ विदा लेकर मैं
गंगा के उस पार चले गये, ‘वे
तीनों’ ये शब्द सुने
‘हा राम’ कहते दुःख से तब, अश्रु
बहाने लगे सभी वे
जोर-जोर से क्रन्दन करते,
झुण्ड-के झुण्ड खड़े हुए
देख उन्हें नहीं पाएंगे, निश्चय
ही हम सब मारे गये
दान, यज्ञ, विवाह आदि में, नहीं
उन्हें अब देखेंगे
पिता की भांति पालन करते,
था सबका ख्याल उन्हें
किसके लिए क्या है हितकारी,
किसे प्रिय होगा उसका
सदा विचार किया करते थे,
किस वस्तु से सुख पायेगा
स्त्रियों के रोने की ध्वनि
भी, पड़ी सुमन्त्र के कानों में
बैठ खिड़कियों में महलों की,
करती थीं विलाप दुःख में
राजमार्ग के मध्य से जाते,
मुँह ढका वस्त्र से अपना
रथ ले गये उसी महल को,
जिसमें रहते थे राजा
शीघ्र उतर किया प्रवेश तब,
सात ड्योढ़यां कीं पार तब
श्रीराम के शोक से पीड़ित, सुने
रानियों के आर्त स्वर
हाहाकार किया दुखी हो,
राजभवन की महिलाओं ने
धनिकों की अट्टालिकाओं में,
सप्त मंजिले मकानों में
श्रीराम के साथ गये थे, उनके
बिना ही लौटे हैं यह
क्रन्दन करती कौसल्या को,
क्या उत्तर देंगे अब यह
जैसे जीवन दुःख जनित है,
नाश भी सुकर नहीं है इसका
कौसल्या जीवित हैं अब तक,
पुत्र वन को चला गया
सुनी रानियों की वह बात,
दग्ध हुए शोक से सुमन्त्र
राजा एक भवन में बैठे,
पुत्रशोक से दीन, मलिन
किया प्रणाम उन्हें तब
जाकर, राम का फिर संदेश दिया
हुए मुर्च्छित होकर व्याकुल,
राजा ने चुपचाप सुना
दुःख से व्यथित हुआ
अंत:पुर, चीत्कार करते थे सब
कौसल्या ने उन्हें उठाया,
सुमित्रा की सहायता से तब
लौटे हैं सुमन्त्र जंगल से,
ले संदेश श्रीराम का
बात क्यों नहीं इनसे करते,
पुण्य मिले सत्य पालन का
था अन्याय देना वनवास, क्यों
आप लज्जित होते हैं
नष्ट सभी हो जायेंगे, क्यों
आप शोक करते हैं
जिसके भय से नहीं पूछते,
मंत्री से संदेश राम का
निर्भय होकर बात कीजिये,
कैकेयी वह है नहीं यहाँ
कहकर ऐसा कौसल्या का, भर आया
गला दुःख से
धरती पर वे भी गिर गयीं, बोला
नहीं गया शोक से
कौसल्या को देख मूर्च्छित, देख
पति को दीन दशा में
रोने लगीं सभी रानियाँ, घेर
उन्हें चारों ओर से
अंत:पुर के आर्तनाद को, सुनकर
वृद्ध, युवा सब रोये
रोने लगीं स्त्रियाँ सारी,
व्याकुल हुआ नगर शोक से
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में सतावनवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
आज के दौर में बहुत प्रेरक प्रस्तुति ........
ReplyDeleteMere blog ki new post par aapka swagat hai..