श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
षटपञ्चाशः सर्गः
वन की शोभा देखते-दिखाते हुए श्रीराम आदिका चित्रकूट में पहुँचना, वाल्मीकिजी
का दर्शन करके श्रीरामकी आज्ञासे लक्ष्मण द्वारा पर्णशाला का निर्माण तथा उसकी
वास्तुशांति करके उन सबका कुटी में प्रवेश
तत्पश्चात रात्रि जब बीती,
रघुकुल भूषण श्रीराम ने
धीरे से लक्ष्मण को जगाया,
उनसे फिर ये वचन कहे
सुनो मधुर कलरव शुक-पिक का,
हुआ समय अब चलने को
सही समय पर जगा दिया था,
त्यागा निद्रा और अलस को
यमुना नदी के शीतल जल में, कर
स्नान चले वे पथ पर
ऋषि-मुनियों द्वारा सेवित
था, चित्रकूट के उस मार्ग पर
संग लक्ष्मण के जाते थे,
राम और सीता उस वन से
खिले हुए पलाश देखो ये, कहा
राम ने वैदेही से
मालाधारी से लगते हैं, ये पलाश
निज पुष्पों से
प्रज्वलित होते से भी लगते,
पुष्पों की ही अरुण प्रभा से
बेल, भिलावे के वृक्ष भी,
झुके हुए निज फूल, फलों से
हैं पर्याप्त हमारे हेतु, नहीं
किया उपयोग किसी ने
कहा लक्ष्मण से ये देखो, मधु
के छत्ते लटक रहे हैं
एक-एक द्रोण मधु भरा है,
मधुमक्खी ने पुष्ट किये हैं
अति रमणीय वन का यह भाग,
भूमि ढकी हुई पुष्पों से
चातक पी की करे पुकार, देता
उत्तर ज्यों मोर उसे
चित्रकूट पर्वत यह देखो, जिसका
शिखर अति ऊँचा है
झुण्ड हाथियों के जाते हैं,
अनगिन पक्षी चहक रहे हैं
समतल भू जो ढकी वृक्ष से,
वहीं प्रसन्न हो हम विचरेंगे
पैदल चलते तब वे तीनों,
सुंदर पर्वत पर जा पहुंचे
कहा राम ने निकट गये जब, सुख
से जीवन यहाँ कटेगा
मुनि महात्मा भी बसते हैं, यहीं
सुखद निवास बनेगा
बाल्मीकि के आश्रम में तब, जोड़ हाथ प्रवेश किया
स्वागत किया मुनि ने उनका,
आदर व सत्कार किया
परिचय दिया महर्षि को तब, श्रीराम
ने जो उचित था
कुटिया हेतु लकड़ियाँ लाओ,
लक्ष्मण को आदेश दिया
वृक्षों की डालियाँ काटीं,
एक पर्णशाला बना दी
लकड़ी की दीवार से सुस्थिर,
ऊपर से छत भी छा दी
सुंदर कुटी देख राम ने, कहा
पुनः प्रिय भाई से
पर्णशाला के अधिष्ठाता जो, देवों
की पूजा करेंगे
दीर्घ जीवन जिन्हें चाहिए, वास्तुशांति
है अपेक्षित
गजकन्द का गूदा लेकर, विधि
करेंगे शास्त्रोउचित
भाई की यह बात समझकर, लक्ष्मण ले आए गजकन्द
सौम्य मुहूर्त जान पकाया,
दिन भी था वह ध्रुव संज्ञक
काले छिलके वाले कंद को, डाल
दिया प्रज्ज्वलित अग्नि में
रक्तविकार का नाश जो करता,
पका जान यह कहा राम से
रघुनाथ ! यह गजकंद है,
बिगड़े अंगों को सुधाारता
वास्तुदेवों का यजन करें
अब, हैं आप जपकर्म के ज्ञाता
सद्गुण सम्पन्न श्रीराम ने,
नियमों का पालन जो करते
मन्त्र पाठ व जप किया तब, सब
देवों का पूजन करके
किया प्रवेश तब पर्णकुटी
में, मन में था अति आह्लाद
बलिवैश्व देव कर्म भी किया,
रुद्याग व वैष्णव याग
वास्तुदोष की शांति हेतु,
मंगल पाठ किया राम ने
बलिकर्म किया सम्पन्न, गायत्री
आदि भी जप के
की आयतनों की स्थापना, वेदिस्थलों,
चैत्यों की भी
छोटी सी कुटी के अनुरूप, जगह
बनाई देवों की भी
अति मनोहर कुटिया थी वह, रक्षा
करे प्रचंड वायु से
किया प्रवेश एक साथ फिर,
ज्यों करें देव सुधर्मा में
चित्रकूट पर्वत मनहर था,
मन्दाकिनी व तीर्थ वहाँ थे
घर से दूर चले आने का, भूल
गये वे कष्ट हर्ष में
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छप्पनवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
No comments:
Post a Comment