Wednesday, March 25, 2015

राजा जनक का संदेश पाकर मंत्रियों सहित महाराज दशरथ का मिथिला जाने के लिए उद्यत होना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


अष्टषष्टितमः सर्गः

राजा जनक का संदेश पाकर मंत्रियों सहित महाराज दशरथ का मिथिला जाने के लिए उद्यत होना

राजा जनक की आज्ञा पाकर, दूत अयोध्या ओर चले
तीन रात्रियां बिता मार्ग में, चौथे दिन वे जा पहुँचे

राजमहल में किया प्रवेश, देवतुल्य राजा को देखा
हाथ जोड़, निर्भय होकर, मधुर वचन राजा से कहा

मिथिलापति जनक राजा ने, अग्नि को सामने रखकर
सेवक संग पुरोहित व आपका, पूछा है कुशल मंगल

कुशल पूछ संदेश दिया है, विश्वामित्र की ले आज्ञा
पुत्री के विवाह हेतु जो, पूर्व काल में की प्रतिज्ञा

शुल्क पराक्रम तय किया था, कितने ही राजा आये
किन्तु सिद्ध न हुए लक्ष्य में, विमुख हुए घर लौट गये

श्रीराम ने जीत लिया है, मेरी कन्या को अकस्मात ही  
दिव्य धनुष को तोड़ दिया है, जनसमुदाय में सहज ही

अतः प्रदान करूंगा उनको, वीर्य-शुल्का प्रिय पुत्री  
पूर्ण प्रतिज्ञा को कर पाऊं, आज्ञा दें आप इसकी

शीघ्र पधारें आप यहाँ, संग गुरू व पुरोहित के
हो कल्याण आपका हे नृप, भेंट करें दोनों पुत्रों से

पुत्रों के विवाह से उत्पन्न, आनंद को ग्रहण करें
शतानंद की पाकर सम्मति, यह संदेश दिया राजा ने

वचन सुना जब दशरथ ने यह, अति प्रसन्न हुए थे राजा
वसिष्ठ, वामदेव, व अन्यों से, तब यह सुंदर वचन कहा

कुशिका नंदन विश्वामित्र से, हुए सुरक्षित कौशल्या नंदन
हैं भाई संग विदेह देश में, जहाँ दिखाया है पराक्रम

राजा जनक चाहते राम, उनकी पुत्री से विवाह करें
यदि सम्मति हो आपकी, हम सब शीघ्र वहीं चलें

एक स्वर में दी सम्मति, मंत्रियों ने संग महर्षि
हो प्रसन्न कहा राजा ने, करें यात्रा कल प्रातः ही

सद्गुण सम्पन्न थे मंत्री, उनका बड़ा किया सत्कार
रात्रि बीती आनंद से, सुन बारात चलने की बात

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अड़सठवाँ सर्ग पूरा हुआ.





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