Tuesday, March 17, 2015

श्रीराम के द्वारा धनुर्भंग तथा राजा जनक का विश्वामित्र की आज्ञा से राजा दशरथ को बुलाने के लिए मंत्रियों को भेजना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

सप्तषष्टितमः सर्गः

श्रीराम के द्वारा धनुर्भंग तथा राजा जनक का विश्वामित्र की आज्ञा से राजा दशरथ को बुलाने के लिए मंत्रियों को भेजना

श्री राम को धनुष दिखाएँ, विश्वामित्र मुनि जब बोले
दिव्य धनुष यहाँ ले आओ, आज्ञा दी जनक राजा ने

आज्ञा पाकर गये मंत्री, आगे कर उसे निकले बाहर
लोहे की संदूक में था वह, पहियों द्वारा उसे ठेलकर

कहा मुनि से तब राजा ने, यही श्रेष्ठ वह धनुष महान
इसे उठाने में थे असमर्थ, उन राजा ने भी किया सम्मान

देव, असुर, राक्षस, यक्ष, गन्धर्व भी रहे असमर्थ
इसे खींचने या हिलाने, बाण संधान प्रयत्न सब व्यर्थ

लाया गया है श्रेष्ठ धनुष, राजकुमारों को दिखलाएँ
राम ने खोला वह संदूक, आज्ञा पाकर महामुनि से

कहा राम ने देख धनुष को, इसे लगाता हूँ अब हाथ
इस उठाने और चढ़ाने, का भी करता हूँ प्रयास

एक स्वर से मुनि व राजा, बोले, ‘हाँ, ऐसा ही करो’
रघुकुल नंदन ने सहज उठाया, लीला करते हों मानो

प्रत्यंचा चढ़ाकर उसकी, खींचा जब कान तक अपने
टूट गया वह धनुष मध्य से, देखा जिसे हजारों ने

वज्रपात हुआ हो जैसे, हुई भारी आवाज भयानक
पर्वत फटा हो या कोई, आया हो महान भूकम्प

मुनिवर, राजा, राम लक्ष्मण, के अतिरिक्त लोग सभी
गिरे धरा पर हो मूर्छित, शब्द सुना जब घोर तभी

थोड़ी देर में हुए सजग वे, निर्भय हुए जनक राजा ने
‘श्रीराम ने किया पराक्रम’, हाथ जोड़कर कहा, मुनि से

महादेव का धनुष चढ़ाना, है अद्भुत, अचिन्त्य, अतर्कित
पतिरूप में प्राप्त करेगी, पुत्री सीता हो हर्षित

जो प्रतिज्ञा की थी मैंने, वीर्य शुल्का उसे बना कर  
सत्य हुई व सफल आज वह, प्राणों से है वह बढ़कर

हो मुनिवर कल्याण आपका, यदि आप आज्ञा देंगे
 मंत्रीगण रथ पर सवार हो, अयोध्या को प्रस्थान करेंगे

विनयपूर्वक दशरथ को तब, लिवा लायें मिथिला नगरी में
समाचार सब कहें यहाँ का, विवाह की बात भी उन्हें कहें

‘ऐसा ही हो’ कहकर मुनि ने, किया समर्थन उस बात का
समझा-बुझा कर मंत्रियों को, नृप दशरथ को लाने भेज दिया  



इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में सरसठवाँ सर्ग पूरा हुआ.


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