श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
पंचत्रिंशः सर्गः
शोणभद्र पार करके विश्वामित्र आदि का गंगाजी के तट पर पहुंचकर वहाँ रात्रिवास
करना तथा राम जी के पूछने पर विश्वामित्रजी का उन्हें गंगाजी की उत्पत्ति की कथा
सुनाना
देवकार्य की सिद्धि हेतु, गंगा को माँगा देवों ने
आगे चलकर हुईं अवतीर्ण, त्रिपथगा नदी रूप में
त्रिभुवन के हित की इच्छा से, गिरिराज हिमवान ने
लोकपावनी निज पुत्री को, धर्मपूर्वक दिया उन्हें
हुए कृतार्थ उन्हें पाकर वे, गंगा जी को लिए गये
गिरिराज की दूजी कन्या, हुईं तल्लीन तपस्या
में
उग्र तप में हुईं संलग्न, विश्व वंदिता उमा उत्तम
ब्याही गयीं भगवान रूद्र से, अति समर्थ जो हैं अनुपम
रघुनन्दन ! इस प्रकार ये, कन्याएं हैं हिमालय की
सारा जग झुकता चरणों में, उमा व गंगा दोनों के ही
तुम इसका भी राज सुनो, त्रिपथगामिनी कैसे हुईं वे
पहले गईं आकाश मार्ग फिर, स्वर्ग से हो धरा पर ये
देव नदी के रूप में गंगा, देव लोक में हुईं आरूढ़
जल रूप में हुईं प्रवाहित, गयीं रसातल कर पाप दूर
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पैंतीसवां
सर्ग पूरा हुआ.
आपकी शब्द सामर्थ्य और मधुरता को प्रणाम !
ReplyDeleteबहुत सुदर। मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है।
ReplyDeleteसतीश जी व प्रेम सरोवर जी, स्वागत व आभार !
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