श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
पंचत्रिंशः सर्गः
शोणभद्र पार करके विश्वामित्र आदि का गंगाजी के तट पर पहुंचकर वहाँ रात्रिवास
करना तथा राम जी के पूछने पर विश्वामित्रजी का उन्हें गंगाजी की उत्पत्ति की कथा
सुनाना
संग महर्षियों के मुनिवर ने, नदी के तट पर किया शयन
बीती रात प्रभात हुआ, तब, रामचन्द्र से कहा कथन
उठो राम ! अब हुआ सवेरा, करो तैयारी अब चलने की
नित्यनियम पूर्ण किये तब, राम हुए तैयार शीघ्र ही
शुभजल से परिपूर्ण हुआ यह, शोण भद्र का तट सुशोभित
किस मार्ग से पार करेंगे, यह अथाह हो रहा प्रतीत
जिस मार्ग से सदा महर्षि, शोण भद्र को करते पार
पहले से निर्णय कर रखा, उस पथ से हम जाएँ पार
बुद्धिमान मुनि से सुनकर, सभी चले वन शोभा लखते
दीर्घ मार्ग तय किया उन्होंने, पावन गंगा तट पर पहुंचे
हंसों और सारसों से थी, सेवित पुण्य सलिला भागीरथी
विधिवत किया स्नान सभी ने, पितरों का किया तर्पण भी
अग्निहोत्र कर भोजन पाया, अमृत सम था जो हविष्य
मुनि को घेर सभी बैठे तब, श्रीराम ने किया प्रश्न यह
भगवन ! मैं सुनना यह चाहूँ, बहने वाली तीन मार्ग से
तीन लोक में हो प्रवाहित, सिन्धु से मिली गंगा कैसे
प्रेरित होकर इस प्रश्न से, कही कथा गंगा की मुनि ने
कैसे हुई उत्पत्ति इसकी, कैसे पायी वृद्धि इसने
हिमवान् एक पर्वत है, पर्वत राज व रत्नाकर भी
हिमवान की दो कन्याएं, अति सुंदर, अनुपमा भी
मेरू पर्वत की सुपुत्री, मेना प्रिय पत्नी है उसकी
मनोहारिणी, सुंदर मेना, उन कन्याओं की जननी
पहली कन्या गंगा जी हैं, ज्येष्ठ पुत्री हिमवान की
दूजी कन्या उमा कहाती, मेना के गर्भ से उपजी
गंगा माँ कि उत्पत्ति कि सुन्दर कथा को शिल्प्बद्ध किया है आपने .. मोहम ...
ReplyDeletebahut sunder prastutikaran ...
ReplyDeleteसुन्दर शिल्प्बद्ध किया है
ReplyDelete............सार्थक लेखन .............
ReplyDeleteसमझने मे सबको होगी आसानी
दिगम्बर जी, प्रमोद जी, कुंवर जी, विभा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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