श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
चतुस्त्रिंशः सर्गः
गाधि की उत्पत्ति, कौशिकी की प्रशंसा, विश्वामित्रजी का कथा बंद करके आधी रात
का वर्णन करते हुए सबको सोने की आज्ञा देकर शयन करना
बीत गयी है अर्ध रात्रि, अब सो जाओ कुछ देर को
कल यात्रा में विघ्न पड़े न, राम !, तुम्हारा कल्याण हो
निष्कम्प जान पड़ते हैं, वृक्षों का पत्ता न हिले
अंधकार से पूर्ण दिशाएं, पशु-पक्षी भी छिपे सो रहे
धीरे-धीरे संध्या बीती, तारों से भर गया आकाश
ज्योतिर्मय सहस्त्र नेत्र ज्यों, भर जाते अनुपम प्रकाश
शीतरश्मि चन्द्रमा मनों को, आह्लाद कर रहे प्रदान
यक्ष, राक्षसों के समुदाय, रात्रि में करते हैं विचरण
हुए शांत कह ऐसा मुनिवर, मुनियों ने
दिया साधुवाद
कुशपुत्रों का वंश सदा ही, रहता आया धर्म परायण
कुशवंशी महात्मा श्रेष्ठ, तेजस्वी ब्रह्मा के समान
सरिताओं में श्रेष्ठ कौशिकी, सर्वश्रेष्ठ उनमें हैं आप
इस प्रकार होकर आनन्दित, मुनियों द्वारा हुए प्रशंसित
अस्त हुए सूर्य की भांति, कौशिक मुनि हुए थे निद्रित
लक्ष्मण सहित राम को भी, विस्मय हुआ कथा यह सुनकर
की सराहना विश्वामित्र की, लेने लगे नींद वे सुखकर
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौतीसवां सर्ग
पूरा हुआ.
बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteकैलाश जी, स्वागत व आभार !
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