श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
विंश सर्गः
राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इंकार करना और विश्वामित्र का
कुपित होना
विश्वामित्र की बात सुनी जब, दो घड़ी तक रहे अचेत
दारुण दुःख झेला राजा ने, बोले होकर पुनः सचेत
सोलह वर्ष का नहीं हुआ है, कमलनयन राम है छोटा
राक्षस से युद्ध वह करे, नहीं है उसमें यह योग्यता
मेरे पास अक्षौहिणी सेना, जिसका पालक व स्वामी मैं
इस सेना को लिए साथ, युद्द करूँगा उनसे स्वयं मैं
शूरवीर सैनिक मेरे ये, अति कुशल, पराक्रमी भी
राक्षसों से युद्ध करेंगे, इनका जाना ही उचित भी
लिए हाथ में धनुष स्वयं मैं, युद्ध करूँगा निशाचरों से
जब तक देह में प्राण रहेंगे, यज्ञ की रक्षा होगी मुझसे
नियम आपका पूरा होगा, बिना किसी भी भय, बाधा के
राम को न ले जाएँ आप, मैं चलूँगा संग आपके
राम अभी बालक है छोटा, विद्या युद्ध की नहीं जानता
न ही अस्त्र चलाना, न ही, बलाबल शत्रु का जानता
नहीं योग्य है युद्ध कला के, राक्षस माया बड़ी जानते
राम वियोग मुझे है भारी, जीवित रहूँ न बिन इसके
बहुत हुई है आयु मेरी, कठिनाई से पायी सन्तान
यदि इसे ले जाना चाहें, सेना संग, मैं करूं प्रयाण
चारों पुत्रों में ज्येष्ठ राम, है उस पर प्रेम सर्वाधिक
हैं कौन वे निशाचर ?, किसके पुत्र व किससे रक्षित ?
संग लिए अपनी सेना को, मायायोधी उन राक्षसों से
हे ब्रह्मन ! कहें आप ये, कैसे उनसे युद्ध करूं मैं
कभी रामलीला में देखे प्रसंग याद आने लगे ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकविता में बंदिश में आला ऊदल शैली प्रवाह और माधुर्य है .खूबसूरत .
ReplyDeleteमैं वास्तव में धन्य-धन्य हो गया हूँ,कविता पढ़ कर।
ReplyDelete