श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टम सर्गः
राजा का पुत्र के लिये अश्वमेधयज्ञ करने का
प्रस्ताव और मंत्रियों तथा ब्राह्मणों द्वारा उनका अनुमोदन
राजा को देकर बधाई, लौट गए सब धर्मज्ञ ब्राह्मण
देकर मंत्रियों को आदेश, गए नृप भी निज प्रांगण
कहा नरेश ने रानियों से तब, दीक्षा ग्रहण करें वे भी
पुत्र के लिये यज्ञ करेंगे, सुन हर्षित हुईं रानियाँ भी
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में आठवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
नवमः सर्गः
सुमन्त्र का राजा को ऋष्यश्रृंग मुनि को बुलाने की
सलाह देते हुए उनके अंगदेश में जाने और शांता से विवाह करने का प्रसंग सुनाना
पुत्र यज्ञ की बात सुनी जब, कहा सुमन्त्र ने एकांत में
अति पुराना एक इतिहास है, सुनिए, हे राजन ! मुझसे
अश्वमेध का यह विधान भी, किया ऋत्विजों ने ही है
किन्तु कुछ विशेष बात है, सनत्कुमार ने जो कही है
कहा उन्होंने था मुनियों से, कश्यप के हैं पुत्र विभाण्डक
उनका भी इक वंशज होगा, नाम रखेंगे ऋष्यश्रृंग
वे रहेंगे सदा ही वन में, पालन वन में ही होगा
पिता के सँग ही सदा रहेंगे, दूजा कुछ न परिचित होगा
ब्रह्मचर्य के दो रूप हैं, मुख्य और गौण कहलाते
पालन होगें दोनों ही, सहज सदा उन ऋषिवर से
पिता व अग्नि की सेवा में, समय व्यतीत होगा उनका
उसी काल में अंगदेश में, रोमपाद होंगे एक राजा
धर्म उल्लंघन होगा उनसे, अनावृष्टि राज्य में होगी
जनता हाहाकार करेगी, भय से भी व्याकुल होगी
रोमपाद को भी दुःख होगा, ब्राह्मणों से उपाय पूछेंगें
वेद शास्त्र के ज्ञाता हैं जो, प्रायश्चित उनसे जानेंगे
वेदों के विद्वान वे मुनि, राजा को सलाह देगें
ऋष्यश्रृंग को कर आमंत्रित, पुत्री उन्हें सौंप देंगे
राजा को चिंता होगी यह, कैसे उन्हें बुलाया जाये
पुरोहित व मंत्री भी चिंतित, कैसे उन्हें मनाया जय
किसी बहाने से वे उनको, अंगदेश में ले आएंगे
आते ही वर्षा भी होगी, शांता से फिर ब्याहेंगे
आपके वह हुए जामाता, वे ही यज्ञ का करें सम्पादन
राजा सुनकर हो हर्षित, लगे पूछने विस्तृत विवरण
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...
ReplyDeleteरोचक प्रसंग, प्रवाह अबाधित!
ReplyDeleteकैलाश जी व मनोज जी आपका स्वागत व आभार!
ReplyDeleteबहुत रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति.बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .
शुभकामनायें.