श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
सप्तमः सर्गः
राज मंत्रियों के गुण और नीतिका वर्णन
मंत्रणा को गुप्त रखते थे, सूक्ष्म विषय का करें विचार
नीति शास्त्र का ज्ञान था उनको, प्रिय वाणी करें व्यवहार
ऐसे थे गुणवान मंत्री, राजा जिन सँग शासन करते
गुप्तचरों के द्वारा दृष्टि, शत्रु राज्यों पर थे रखते
धर्मपूर्वक पालन करते, सदा अधर्म से दूर ही रहते
तीनों लोकों में प्रसिद्धि, उदार और सत्य प्रतिज्ञ थे
नहीं मिला था कोई शत्रु, जो उनसा या बड़ा हो उनसे
मित्र बहुत थे उनके लेकिन, चरणों में भी कई थे झुकते
दूर हुए थे कंटक सारे, राज्य के उनके प्रताप से
रह अयोध्या में वह राजा, इंद्र की भांति शासन करते
सभी मंत्री रत रहते थे, राज्य के हित साधन में ही
थे अनुरक्त नरेश के प्रति, कार्यकुशल व शक्तिशाली भी
सारे जगत को करे प्रकाशित, ज्यों सूर्य रश्मियों से शोभित
उसी प्रकार घिरे रहते थे, दशरथ मंत्रियों से सज्जित
इस प्रकार श्री वाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण
आदिकाव्य के बालकाण्ड में सातवाँ सर्ग पूरा हुआ.
यह सिलसिला बेहद रोचक है।
ReplyDeleteसातवाँ संसर्ग संपन्न हुआ ,बधाई ,वीरुभाई से वीरेंद्र कुमार शर्मा गूगल + ने बना दिया .अच्छा नहीं लगा ,मालूम न था ये होगा ,हमें तो अपने लघु नाम रूप "वीरू "से प्यार रहा ,बुलंदशहर में प्रारम्भिक १४ -१५ बरस अपने मुस्लिम भाइयों की सोहबत में बीते उनके घर जाते -"बाज़ी"(दोस्त की बहन ) दौड़ के कहतीं मुबीन भाई -वीरुभाई आयें हैं .बस तभी से हम "वीरुभाई "हो गए अम्बानियों से हमारा कोई मतलब नहीं हैं .हमें आप बताएं कैसे दोबारा ब्लॉग पे "वीरुभाई "दिखें कहलाएं ?
ReplyDeleteवीरू भाई, आपके इस नाम की कहानी तो बहुत रोचक है, अब यह नाम कैसे मिलेगा यह तो हमें नहीं पता, कोशिश कीजिये.
Deleteबहुत सुन्दर अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमनोज जी व दीपांकर जी आपका स्वागत व आभार!
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