श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
बोधोपल्ब्धि (शेष भाग)
है सबका आधार वही, वही प्रकाशक है सबका
सर्वरूप व सर्व व्याप्त वह, नित्य, शुद्ध, अद्वैत आत्मा
भेद रहित, अंतर आत्मा, अदृश्यमान है अनंत
आनंद स्वरूप निर्विकल्प, वही एक हूँ परम ब्रह्म
क्रिया रहित, विकार रहित हूँ, निराकार, निरालम्ब
हूँ अद्वितीय, आत्मा सबका, ज्ञान स्वरूप, आनंद रूप
हे सदगुरु, मैंने पाया है, कृपा आपकी है मुझपर
बारम्बार नमन है तुमको, ज्ञान की है महिमा अनुपम
माया में मैं भटक रहा था, जन्म-मृत्यु, जरा के भय से
मेरी रक्षा की आपने, जगा दिया है गहन नींद से
हे सदगुरु, नमन है तुमको, सत स्वरूप तुम तेजवान हो
विश्व रूप हो व्याप रहे हो, परम पूज्य तुम ज्ञानवान हो
वाह आनन्द आ गया।
ReplyDeleteहे सदगुरु, नमन है तुमको, सत स्वरूप तुम तेजवान हो
ReplyDeleteविश्व रूप हो व्याप रहे हो, परम पूज्य तुम ज्ञानवान हो
बहुत सुन्दर, आभार!
हे सदगुरु, नमन है तुमको, सत स्वरूप तुम तेजवान हो
ReplyDeleteविश्व रूप हो व्याप रहे हो, परम पूज्य तुम ज्ञानवान हो
बहुत ही अनुकरणीय पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।