Monday, January 25, 2016

कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिए मंगलकामनापूर्वक स्वस्तिवाचन करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिए मंगलकामनापूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना

क्लेशजनित शोक को मन से, दूर कर दिया तब माता ने
यात्राकालिक मंगलकृत हित, किया आचमन पावन जल से

अब मैं तुम्हें रोक न सकती, रघुकुल भूषण ! अब जाओ
सत्पुरुषों के पथ पर रह कर, शीघ्र लौट, वन से आओ

सदा सुखी रह जिस धर्म का, नियमपूर्वक पालन करते
रघुकुल सिंह धर्म वही अब, रक्षा करे सभी ओर से

जिनको तुम करते प्रणाम, देव स्थानों व मन्दिर में
संग महर्षियों, देव सभी, वन में रक्षक बनें तुम्हारे

सद्गुणों से तुम प्रकाशित, दिए मुनि ने जो भी अस्त्र
रक्षा करें सभी ओर से, सदा तुम्हारी प्रियवर पुत्र !

शुश्रूषा पिता की की है, सेवा भी माताओं की
सत्य पालन से रहो सुरक्षित, बने रहो चिरंजीवी

समिधा, कुशा, पवित्री, वेदी, मन्दिर, पर्वत, वृक्ष सभी
पक्षी, पोखर, सर्प और सिंह, रक्षक बनें तुम्हारे सब ही

साध्य, विश्वेदेव तथा, संग महर्षि मरुद्गण सारे
धाता और विधाता दोनों, पूषा, भग, कल्याण करें

लोकपाल, छह ऋतुएं, मास, संवत्सर दिन व रात्रि,
मंगलकारी हो जाएँ, श्रुति, स्मृति, तथा धर्म भी

स्कन्ददेव, सोम, बृह्स्पति, सप्तर्षिगण, मुनि नारद भी
सिद्द गण, दिशाएं, दिक्पाल, हों संतुष्ट स्तुति से मेरी

पर्वत, सागर, वरुण, द्युलोक, अंतरिक्ष, पृथ्वी व वात
सब नक्षत्र, चराचर प्राणी, देवों सहित संध्या, दिन-रात

रक्षा करें तुम्हारी वन में, मुनि का वेश धरे जब वन में
हिंसक जीवों, और पिशाचों, भय न हो राक्षसों से

मेढक, वानर, बिच्छू, डांस, मच्छर, सर्प, कीट सभी
हिंसक न हों, द्रोह करें न, रीछ, सिंह, व्याघ्र, हाथी

मेरे द्वारा पूजित होकर, नरभक्षी भी न हों हिंसक
मार्ग सभी मंगलकारी हों, करो यात्रा तुम सकुशल

नभचर, भूचर, देव सभी, शत्रु भी मंगलकारी हों
शुक्र, सोम, सूर्य, कुबेर, यम हो पूजित रक्षक हों

स्नान और आचमन समय, अग्नि, वायु, धूम, मन्त्र
ब्रह्मा, ऋषिगण, परब्रह्म, सब के सब बनें रक्षक

ऐसा कह विशाल लोचना, रानी ने किया पूजन
पुष्प, गंध, स्तुति के द्वारा, होम कराया विधिपूर्वक

ब्राह्मण ने शांति के हित तब, अर्पित की बलि करके होम
स्वस्तिवाचन हित दे दान, स्वस्त्ययन मन्त्रों का पाठ

दी दक्षिणा मनोनुकूल, कहे वचन राम से माँ ने
इंद्र को जो आशीष मिला था, मंगल हित हो वही तुम्हारे


2 comments:

  1. आपने लिखा...
    और हमने पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 26/01/2016 को...
    पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
    आप भी आयीेगा...

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत आभार !

    ReplyDelete