श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
द्विचत्वारिंशः सर्गः
अंशुमान और भगीरथ की तपस्या, ब्रह्माजी का भगीरथ को अभीष्ट वर देकर गंगाजी को
धारण करने के लिए भगवान शंकर को राजी करने के निमित्त प्रयत्न करने की सलाह देना
अंशुमान बनें अब राजा प्रजाजनों की यह इच्छा थी
राजा सगर जब स्वर्ग सिधारे राम ! यही बात उचित थी
बड़े प्रतापी राजा थे वे एक महान पुत्र भी पाया
बलशाली व वीर अति नाम दिलीप रखा था जिसका
निज पुत्र को दे राज्य स्वयं को तप से सम्पन्न करने
हिमालय के रमणीय शिखर पर अंशुमान गये तप करने
बत्तीस हजार वर्ष बीते थे जब देह त्याग दी राजा ने
स्वर्गलोक को प्राप्त किया था निज तपस्या के बल से
पितामहों के वध वृतांत से थे व्यथित राजा दिलीप भी
सोच-विचार किया करते थे कर न सके निश्चय कोई भी
चिंतन में ड़ूबे रहते थे गंगा कैसे धरा पर उतरें
कैसे दूँ जलांजलि पितरों को हो उनका उद्धार भी कैसे
धर्म के पथ पर चलने वाले थे विख्यात दिलीप जगत में
पुत्र भगीरथ प्राप्त हुआ था पारंगत वह भी धर्म में
यज्ञों का किया अनुष्ठान राज्य किया सहस्त्रों वर्षों
पितरों की चिंता से पीड़ित रोग से प्राप्त हुए मृत्यु को
पुत्र भगीरथ बने अब राजा गये दिलीप इन्द्रलोक को
थी सन्तान नहीं राजा की फिर भी गये तप करने को
सौंप दिया मंत्रियों को प्रजा की रक्षा का सब भार
गंगा कैसे धरा पर लायें गोकर्ण में करें विचार
पंचाग्नि का सेवन करते दोनों भुज उठाये ऊपर
अल्पाहार ग्रहण करते थे इन्द्रियों को वश में रखकर
एक हजार वर्ष बीते थे घोर तपस्या में वे रत थे
देवों के संग प्रकट हुए तब ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए थे
हूँ प्रसन्न तुम्हारे तप से श्रेष्ठ व्रत का पालन करते
वर मांगो कोई मुझसे अब राजा भी कृतार्थ हुए थे
हाथ जोड़कर बोले उनसे यदि आप प्रसन्न हैं मुझसे
गंगा जी का जल प्राप्त हो पुत्रों को राजा सगर के
मेरे सभी प्रपितामहों को अक्षय स्वर्गलोक मिल जाये
गंगा जी के पावन जल से भस्म राशि उनकी तर जाये
संतति के भी लिए प्रार्थना देव ! आपसे करता हूँ मैं
नष्ट न हो परम्परा कुल की यही आपसे वर मांगूं मैं
बात सुनी भगीरथ की जब मधुर वचन कहे ब्रह्मा ने
हित चाहते सदा सभी का सर्वलोक के पितामह थे
इक्ष्वाकु वंश की वृद्धि होगी पूर्ण तुम्हारे वर होंगे
शंकर जी को करो तैयार गंगा जी को धारण करने
धरा सहन नहीं कर सकती अति वेग है गंगा जी का
महादेव के सिवा न कोई जो इसको धारण कर सकता
राजा से ऐसा कहकर गंगा जी से कहा कृपा हित
इसके बाद स्वर्ग गये वे मरुद्गणों, देवों के सहित
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बयालीसवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
No comments:
Post a Comment