श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
एकोचत्वारिंशः सर्गः
इंद्र के द्वारा राजा सगर के यज्ञ सम्बंधी अश्व का अपहरण, सगर पुत्रों द्वारा
सारी पृथ्वी का भेदन तथा देवताओं का ब्रह्माजी को यह सब समाचार बताना
हर्षित हए राम यह सुनकर, कहा मुनि से कथा अंत पर
कहें इसे विस्तार से मुझको, हो कल्याण आपका मुनिवर
विश्वामित्र को हुआ कौतुहल, वे भी कहना यही चाहते
सुनो यज्ञ का विवरण सारा, कहा उन्होंने हँसते-हँसते
शंकर जी के श्वसुर हिमवान्, विंध्याचल तक हैं जाते
विंध्याचल हिमवान तक जाकर, एक-दूसरे को देखते
इन दोनों के मध्य में स्थित, आर्यावर्त की पुण्य भूमि में
यज्ञ का अनुष्ठान हुआ था, उत्तम उस पावन अंचल में
सुनो ककुस्त्थ नन्दन हे तात ! राजा सगर की सुन आज्ञा
तब अंशुमान ने भार उठाया, यज्ञ के अश्व की रक्षा का
पर्व का दिन था तभी इंद्र ने, राक्षस का सा रूप बनाया
राजा सगर के उस घोड़े को, उसी भेष में चुरा लिया
अश्व कोई लिए जाता है, देख कहा ऋत्विजों ने तत्क्ष्ण
चोर पकड़ कर लायें वापस, अन्यथा यज्ञ में होगा विघ्न
बिना किसी विघ्न-बाधा के, यज्ञ पूर्ण हो तभी कुशल है
वरना होगा महा अमंगल, यज्ञ पूर्णता में मंगल है
साठ हजार वीर पुत्रों से, राजा सगर ने वचन यह कहा
यज्ञ हो रहा महात्माओं से, पावन अंतःकरण है जिनका
राक्षस की यहाँ पहुंच हो सके, ऐसा नजर नहीं आ रहा
जाकर खोज करो घोड़े की, हो पुत्रों ! कल्याण तुम्हारा
सागर से जो घिरी हुई है, छान डालो सारी पृथ्वी को
चप्पा-चप्पा देखो इसका, बाँट योजन में इस भूमि को
जब तक पता चले न अश्व का, रहो खोदते इस धरती को
एक ही लक्ष्य सम्मुख रखो, ढूँढ़ निकालो उस चोर को
यज्ञ की दीक्षा ली है मैंने, स्वयं नहीं जा सकता हूँ अब
अश्व का दर्शन न हो जब तक, यहीं रहूँगा अंशुमान संग
पिता के आदेश से बंध कर, राजकुमार विचरते भू पर
हर्षित होकर अश्व ढूंढते, किन्तु न पाया उसे कहीं पर
किया बंटवारा लगे खोदने, एक-एक योजन भूमि वे
निज भुजाओं के वज्र स्पर्श से, महाबली
पुत्र सगर के
वज्र तुल्य शूलों से बिंधकर, दारुण हलों द्वारा विदीर्ण हो
वसुधा आर्तनाद करती थी, दुस्सह स्पर्श से अति आकुल हो
राजकुमारों द्वारा अगनित, जीवों का संहार हुआ था
नागों, असुरों, राक्षसों का, आर्तनाद भी गूँज रहा था
साठ हजार योजन की भूमि, खोदी थी राजपुत्रों ने
रसातल में चले जा रहे, मानो अनुसन्धान करते वे
इस प्रकार घूमते थे वे, जम्बू द्वीप की इस भूमि पर
युक्त पर्वतों से जो थी, इधर-उधर लगाते चक्कर
गन्धर्वों, असुरों, नागों संग, सभी देवता तब घबरा कर
ब्रह्मा जी के पास गये तब, छाया था विषाद चेहरों पर
भय से व्याकुल हो बोले वे, खोद रहे हैं भू सगर पुत्र
कई महात्मा मारे जाते, जलचारी जीवों के संग-संग
‘विघ्न डालने वाला है यह’, ऐसा कहकर हिंसा करते
‘अश्व यज्ञ का चुरा लिया है’, सभी प्राणियों को यह कहते
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनतालीसवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
साठ हजार वीर पुत्रों से, राजा सगर ने वचन यह कहा
ReplyDeleteयज्ञ हो रहा महात्माओं से, पावन अंतःकरण है जिनका
बहुत बढ़िया आभार
स्वागत व आभार !
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