श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टात्रिंशः सर्गः
राजा सगर के पुत्रों की उत्पत्ति तथा यज्ञ की तैयारी
कथा कही यह मधुर स्वरों में, फिर दूजा प्रसंग सुनाया
विश्वामित्र ने राम चन्द्र को, पुरखों का इतिहास बताया
सगर अयोध्या के राजा थे, धर्म मार्ग पर चलने वाले
पुत्र नहीं था कोई उनको, मन में यही कामना पाले
विदर्भकुमारी केशिनी जिनकी, सत्यवादिनी बड़ी रानी थी
छोटी सुमति बहन गरुड़ की, अरिष्टनेमि कश्यप पुत्री थी
दोनों के संग की तपस्या, राजा सगर ने सौ वर्ष तक
पर्वत राज हिमालय के, भृगुप्रस्रवण नामक शिखर पर
तप द्वारा संतुष्ट हुए जब, श्रेष्ठ महर्षि भृगु पधारे
पुत्र अनेकों प्राप्त करोगे, सुंदर ये वचन उच्चारे
एक पुत्र एक को होगा, साठ हजार पुत्र दूजी को
वंश परंपरा बढ़ेगी जिससे, धारोगे अनुपम कीर्ति को
पूछा तब दोनों ने उनसे, किसको पुत्र एक ही होगा
बहुत से पुत्रों की जननी का, सौभाग्य किसे मिलेगा
उन दोनों की बात सुनी जब, भृगु ने निर्णय छोड़ा उन पर
कौन चाहती पुत्र एक ही, किसे चाहिए दूजा वर
केशिनी ने एक सुत माँगा, सुमति चाहती पुत्र अनेकों
राजा ने झुकाया मस्तक, चले संग उनके नगर को
असमंज को जन्म दिया तब, बड़ी रानी केशिनी ने
तूम्बी के आकार का गर्भ, उत्पन्न किया सुमति ने
उसे फोड़ बालक उपजे तब, साठ हजार जो थे संख्या में
पालन किया धाइयों ने तब, घी से भरे हुए मटकों में
दीर्घकाल के बाद वे बालक, प्राप्त हुए युवावस्था को
बड़ा पुत्र असमंज दुष्ट था, डुबाता था नन्हे बच्चों को
सरयू के निकट ले जाकर, जल में उन्हें छोड़ देता
हँसता जब वे डूबने लगते, सत्पुरुषों को दुःख देता
बाहर किया पिता ने उसको, नगर से अपने होकर क्रोधित
अंशुमान था पुत्र उसी का, मृदुभाषी व सदा समर्पित
‘यज्ञ करूं मैं’, सगर ने सोचा, कुछ काल जब बीत गया
लगे यज्ञ की तैयारी में, उपाध्यायों को बुला लिया
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अड़तीसवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
अनूठा कार्य , खूबसूरत रचना ! मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteस्वागत व आभार सतीश जी
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