श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
द्वाविंशः सर्ग
राजा दशरथ का स्वस्तिवाचन पूर्वक राम-लक्ष्मण को मुनि के साथ भेजना, मार्ग में
उन्हें विश्वामित्र की बला-अतिबला नामक विद्या की प्राप्ति
जाकर दूर अयोध्या से कुछ, सरयू के दक्षिण तट पर
‘करो आचमन सरयू जल से’, कहे मुनि ने मधुर ये स्वर
ग्रहण करो इस मंत्र समूह को, ‘बला अतिबला’ जो कहलाये
श्रम का अनुभव नहीं करोगे, ज्वर, विकार भी नहीं सताये
निद्रित या असावधान भी, राक्षस आक्रमण नहीं करेंगे
तुम बाहुबल में आगे सबसे, तुमसे बलशाली नहीं रहेंगे
तीनो लोकों में अति वीर, ज्ञानवान व चतुर बनोगे
भूख-प्यास का कष्ट न होगा, प्रश्न सभी के हल करोगे
कोई तुमसा नहीं रहेगा, ये विद्याएँ ज्ञान की जननी
अध्ययन इनका कर लेने पर, यश का ये विस्तार करेंगी
ब्रह्मा जी की हैं पुत्रियाँ, तेजस्विनी, अति समर्थ ये
तुममें सब उत्तम गुण हैं, तुम्हीं पात्र योग्य हो इनके
मैंने इनका किया है अर्जन, निसंशय निज तप के बल से
बहुरुपिणी होंगी तुम हित, फल प्रदान करें अनेक ये
हुए पवित्र कर राम आचमन, खिल उठा प्रसन्नता से मुख
ग्रहण की दोनों विद्याएँ, अंतःकरण था उनका शुद्द
सूर्य समान हुए शोभित, विद्या से होकर सम्पन्न
गुरुजनोचित सेवा करके, सुखमय रात्रि बिताई तट पर
योग्य नहीं जो राजपुत्र के, तृण की शय्या पर सोये
स्नेह जताते थे दोनों से, विश्वामित्र
मधुर वाणी से
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बाईसवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
नमन...जय श्रीराम
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ReplyDeleteजाकर दूर अयोध्या से कुछ, सरयू के दक्षिण तट पर
‘करो आचमन सरयू जल से’, कहे मुनि ने मधुर ये स्वर
भावपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति .ॐ शान्ति
रामायण के छन्दों का इतना सुन्दर सरल और काव्यमय अनुवाद हर तरह से हितकारी है ।
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