श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
विश्वामित्रके रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठ का राजा
दशरथ को समझाना
पुत्र स्नेह से भरा हुआ था, राजा का प्रत्येक वचन
कुपित हुए सुन मुनि अति, क्रोध भरे ये कह कथन
पहले की प्रतिज्ञा तुमने, स्वयं ही उसे तोड़ते हो अब
रघुवंशी के योग्य नहीं यह, है कुल के विनाश का सूचक
वैसे ही लौट जाऊँगा, जैसे आया था मैं राजन
सुखी रहो संग मित्रों के, तोड़ के अपना दिया वचन
काँप उठी सारी पृथ्वी, कुपित हुए थे विश्वामित्र जब
समा गया भय देवताओं में, त्रस्त हो गया सारा जग
देख रोष से कंपित जग यह, धीर चित्त वसिष्ठ तब बोले
साक्षात धर्म सम आप हैं, इक्ष्वाकु वंशियों के कुल में
श्री सम्पन्न, व्रत के पालक, धैर्यवान हैं राजन आप
तीनों लोक जानते हैं यह, करें नहीं धर्म परित्याग
‘मैं अमुक कार्य करूंगा’, कहकर जो भी मुकर जाता
यज्ञ आदि नष्ट हो जाते, पुण्यों का नाश हो जाता
श्रीराम को आप भेज दें, संग मुनि सुरक्षित सदा
नहीं जानते अस्त्र विद्या, कर न सकें राक्षस सामना
प्रज्ज्वलित अग्नि के द्वारा, जैसे अमृत रहे सुरक्षित
बलवानों में श्रेष्ठ राम भी, मुनि के साथ सदा रक्षित
विश्वामित्रके रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठ का राजा दशरथ को समझाने की बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteकभी रामलीला में ऐसे संवाद प्रसंग देखने-सुनने में बहुत अच्छा लगता है कई दिन तक मन में उमड़ घुमड़ मची रहती थी ....
वाह बहुत सुन्दर रचना .कथानक के अनुरूप शैली .
ReplyDeleteआभार !
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