Friday, May 24, 2024

सीता अनसूया संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

अष्टादशाधिकशततम: सर्ग: 


सीता अनसूया संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना 


तपस्विनी अनसूया के इन, वचनों को सुनकर सीता ने 

भूरि-भूरि प्रशंसा करके, धीरे-धीरे यही वचन कहे 


 आप संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं, स्त्रियों में सदा पूज्य हैं 

 नारी के लिए पति है गुरु सम, यह बात मुझे पूर्व विदित है 


यदि अनार्य या निर्धन होते, मेरे पतिदेव किसी कारण 

तब भी सेवा में रत रहती, दुविधा बिन कर पूर्ण समर्पण 


फिर जब वे हैं गुणों के सागर, पात्र सभी के आदर के 

तब क्या कहना इनकी सेवा का, परम दयालु हैं अति प्रिय वे 


माँ कौशल्या के प्रति जैसा, व्यवहार, बर्ताव वे करते 

अन्य रानियों के प्रति भी वे, माँ के सम ही वर्तन करते 


महाराज दशरथ ने जिनको, प्रेम से देखा एक बार भी 

पितृ वत्सल श्री राम ने, माँ को देखा उनके भीतर भी 


जब मैं तत्पर थी आने को, निर्जन वन में राम के साथ 

माँ कौशल्या का दिया उपदेश, ज्यों का त्यों मुझे है याद 


 पहले मेरे विवाह काल में, माँ ने सीख जो भी दी थी 

उपदेश कहे अन्य स्वजनों ने, उसके साथ स्मरण हैं सभी 


पति की सेवा के अलावा, नहीं स्त्री के लिए तप दूसरा   

सत्यवान की सेवा करके, जग में पूजित सावित्री सदा  


उन जैसे ही आपने भी तो, स्वर्ग में इक स्थान  बनाया 

पति की सेवा के प्रभाव से, जग में श्रेष्ठ स्थान भी पाया 


स्वर्ग की देवी रोहिणी भी, विलग कब होती चंद्रमा से 

पतिव्रत  हेतु  आदर  पातीं, कई साध्वियाँ देवलोक में 




2 comments: