Saturday, August 5, 2017

वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण विलाप

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

पंचषष्टितमः सर्गः

वन्दीजनों का स्तुतिपाठ, राजा दशरथ को दिवंगत हुआ जान उनकी रानियों का करुण विलाप

रात बीतने पर अगले दिन, वन्दीजन जब हुए उपस्थित
उत्तम सूत, गायक व मागध, यशोगान करने को प्रस्तुत

उच्च स्वरों में देकर आशीषें, राजा की स्तुति करते थे
गुंजित हुआ शब्द उनका तब, भीतर जाकर राजमहल के

सूतगण मिल स्तुति करते थे, पाणिवादक भी कुछ आये थे
कर्मों का करके बखान तब, ताल गति से ताली बजाते

वृक्षों की डालों पर बैठे, पिंजरे में बंद पक्षी भी
जगे शब्द सुन लगे चहकने, गूँजा तब वीणा का स्वर भी

सदाचारी कुशल सेवक तब, प्रतिदिन की भांति आ पहुंचे
भृत्यजन भी स्नान के लिए, स्वर्ण घड़ों में नीर ले आये

पवित्र आचरण करती थीं जो, स्त्रियाँ व कन्यायें कुमारी
गौ, गंगाजल, दर्पण आदि भी, आभूषण, वस्त्र ले आयीं

राजाओं के मंगल हेतु, हर अभिहारिक वस्तु वहाँ थी
विधि अनुरूप, गुणों से युक्त, शुभ लक्षणों से सम्पन्न थी

सूर्योदय होने तक सेवक, प्रतिदिन भांति वहाँ आ गये
राजा जब बाहर न निकले, शंका से सबके मन भर गये

जो राजा के निकट रहती थीं, निकट गयीं तब वे स्त्रियाँ
युक्तिपूर्वक स्पर्श किया जब, जीवन का लक्षण न पाया


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