Friday, January 27, 2017

मुनि के द्वारा उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

चतु:पञ्चाश: सर्गः

लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का प्रयाग में गंगा-यमुना-संगम के समीप भरद्वाज आश्रम में जाना, मुनि के द्वारा उनका अतिथि सत्कार, उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन 
घेर महर्षि को बैठे थे, मृग, पक्षी व ऋषि-मुनि
किया राम का सुस्वागतम, बनकर आए जो अतिथि

आसन पर जब राम विराजे, भरद्वाज मुनि यह बोले
दीर्घकाल से की है प्रतीक्षा, शुभ आगमन हेतु तुम्हारे

मिला तुम्हें वनवास अकारण, यह भी ज्ञात हुआ मुझको
गंगा-यमुना के संगम पर, अति सुखपूर्वक वास करो  

सदा सभी के हित में तत्पर, कहे राम ने वचन उन्हें
निकट जान आयेंगे लोग, नगर और जनपद से मिलने

आश्रम योग्य एकांत स्थल हो, रहें जहाँ सीता सुख से
उद्देश्य की सिद्धि हेतु, कहा वचन यह भारद्वाज ने

दस कोस दूरी पर स्थित, परम पवित्र एक है पर्वत
चित्रकूट नाम है जिसका, गन्धमादन समान मनोहर  

वानर और रीछ हैं उसमें, लंगूर भी अति विचरते
पुण्य कर्म का फल मिलता, पाकर दर्शन शिखरों के

ऋषियों की तपोभूमि है, सुखद और योग्य तुम्हारे
अथवा रहो यहीं मेरे संग, वनवास के उद्देश्य से

ऐसा कह भाई, पत्नी संग, स्वागत व सत्कार किया
बातें करते-करते ही तब, पुण्य रात्रि काल हुआ

राम, लक्ष्मण व सीता ने, सुखपूर्वक रात्रि बिताई
प्रातःकाल ही मांगी आज्ञा, गन्तव्य स्थान जाने की

कहा मुनि ने सुख से जाओ, फल-मूल से सम्पन्न है
हर-भरा नाना वृक्षों से, किन्नर व सर्पों का घर है

मोरों का कलरव गूँजता, गजराजों से सेवित होता
अति रमणीक, परम पावन, जहाँ हरिणों का झुण्ड घूमता

मन्दाकिनी नदी बहती है, गुफा, कन्दरा, हैं झरने
जलस्रोत हैं अन्य अनेकों, सीता संग तुमको भायेंगे

हर्षित हो टिट्टिभ बोलते, कोकिल का कलरव मनहर
उस पर ही जा डालो डेरा, उसे बनाओ अपना घर


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में चौवनवाँ सर्ग पूरा हुआ.

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