श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार
तथा विभिन्न नरेशों और नगर एवं जनपद के लोगों को मन्त्रणा के लिए अपने दरबार में
बुलाना
प्रतिभाशाली, विद्या
सम्पन्न, लोकाचार में कुशल अति
समयोचित आचरण करते, स्थितप्रज्ञ,
थे विनयशील भी
अभिप्राय को गुप्त ही रखते,
उत्तम अति सहायक उनके
क्रोध, हर्ष न निष्फल होता,
त्याग, संग्रह का भेद जानते
गुरुजन के प्रति दृढ भक्ति,
असद्वस्तु कभी न लेते
प्रमाद शून्य, आलस्य रहित, मधुर
वचन ही सदा बोलते
भली प्रकार दोष जानते, अपने
व औरों के भी
शास्त्रज्ञ, कृतज्ञ औरों के,
जानें भाव मनों के भी
यथायोग्य निग्रह करते थे,
चतुर अनुग्रह करने में
सत्पुरुषों का संग्रह करते,
निग्रह भी दुष्ट जनों के
आय-व्यय का राज जानते,
न्यायोचित करें धन उपार्जन
संस्कृत, प्राकृत नाटक ज्ञाता, अस्त्र समूहों का
था ज्ञान
अर्थ, धर्म का संग्रह करके,
काम का सेवन वे करते
वादन, गायन, चित्रकला व, शिल्प
विशेषज्ञ भी थे
हाथी, घोड़े पर चढ़ने व,
चालों का उन्हें था ज्ञान
धनुर्वेद के श्रेष्ठ विद्वान्,
अतिरथी करते सम्मान
सेना संचालन नीति में, अति
कुशलता भी प्राप्त थी
आक्रमण व प्रहार से उनके,
शत्रु सेना डरती थी
समर्थ नहीं थे देव, असुर, कभी
परास्त उन्हें करने में
दोष दृष्टि शून्य थे राम,
वे क्रोध को जीत चुके थे
दर्प, ईर्ष्या का अभाव था,
नहीं उपेक्षा किसी की करते
काल के पीछे नहीं वे जाते,
सबके अति आदरणीय थे
बुद्धि में बृहस्पति सम, क्षमा
में पृथ्वी के समान थे
उत्तम गुणों से युक्त राम, इंद्र
समान पराक्रम में थे
सूर्य प्रकाशित ज्यों
किरणों से, सद्गुणों से राम थे शोभित
प्रजा समस्त उन्हें चाहती,
प्रीति पिता की करते द्विगुणित
ऐसे सदाचार सम्पन्न, लोकपालों
सम वीर अति
पृथ्वी ने भी की कामना, राम
बनें उसके स्वामी
देख गुणी अति प्रिय पुत्र
को, दशरथ ने किया विचार
मेरे जीते राम हो राजा, सुखी
बनूँ राज्यभिषेक कर
बार-बार उठती अभिलाषा,
देखूँगा यह शुभ दिन कब
सबका हित राम चाहते, प्रिय
बने हैं मुझसे बढ़ अब
यथासमय स्वर्ग जाऊं मैं,
राम बनें राजा पृथ्वी के
यही साध मेरे जीवन की, किया
विमर्श मंत्रियों से
बुद्धिमान नृप दशरथ ने, बात
रखी वृद्धावस्था की
स्वर्ग, अन्तरिक्ष, व भूतल
में, होने वाले उत्पातों की
पूर्ण चन्द्रमा का सा मुख,
राम प्रजा के थे अति प्रिय
राजा इसे जानते थे, शोक मिटाने
वाला था यह
उचित समय पर तब राजा ने, मंत्रियों
को आज्ञा दी
राज्यभिषेक होगा राम का, शीघ्र
करें तैयारी इसकी
उर का प्रेम, अनुराग प्रजा
का, इस उतावली में छिपा था
दिया निमन्त्रण राजाओं को, यथायोग्य
सत्कार किया
मिले अलंकृत होकर राजा,
जैसे ब्रह्मा मिलें प्रजा से
मिथिलापति, व केकयनृप को,
नहीं बुलाया राजा ने
सोचा पीछे सुन ही लेंगे,
दोनों राजा यह समाचार
आ बैठे दरबार में दशरथ,
अतिथियों का किया सत्कार
जैसे इंद्र मध्य देवों के,
दशरथ भी शोभित होते थे
घिरे हुए सामंतों से वे,
जनपद, नगर वासियों से
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि
निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में पहला सर्ग पूरा हुआ.
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