Thursday, June 12, 2014

सगर की आज्ञा से अंशुमान का रसातल में जाकर घोड़े को ले आना और अपने चाचाओं के निधन का समाचार सुनाना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकचत्वारिंश सर्गः

सगर की आज्ञा से अंशुमान का रसातल में जाकर घोड़े को ले आना और अपने चाचाओं के निधन का समाचार सुनाना

बहुत हुए दिन गये पुत्रों को, ऐसा जान सगर राजा ने
अंशुमान जो तेजपूर्ण था, राम ! उससे ये वचन कहे

शूरवीर, विद्वान्, तेजस्वी, हो निज पूर्वजों के सम वर
अश्व चोर का पता लगाओ, जाकर चाचाओं के पथ पर

बलशाली, विशाल जीव भी, रहते हैं धरती के भीतर
धनुष और तलवार भी ले लो, उनसे तुम लेने को टक्कर

वंदनीय जो भी पुरुष हों, झुककर उन्हें करना प्रणाम
विघ्न डालने वाले हों जो, उन पर ही करना प्रहार

पूर्ण कराओ इस यज्ञ को, लौटो सफल मनोरथ करके
राजा सगर की मान आज्ञा, अंशुमान चल दिया अस्त्र ले

अंशुमान के चाचाओं ने, मार्ग बनाया था धरती पर
बढ़ता गया उसी पर, राम ! राजा सगर से प्रेरित होकर

महातेजस्वी उस वीर ने, देखा वहाँ एक दिग्ग्ज
दानव, देव पिशाच, राक्षस, पक्षी, नाग से था पूजित

कुशल पूछकर की परिक्रमा, अश्व चोर का परिचय पूछा
उसका प्रश्न सुना दिग्गज ने, परम बुद्धि का जो स्वामी था

अपना कार्य सिद्ध करके तुम, शीघ्र लौट आओगे वीर
हर्षित हुआ बात यह सुनकर, आगे बढ़ा असमंज कुमार

क्रमशः सभी दिग्गजों से तब, वही प्रश्न पूछा उसने
सबने वही शब्द दोहराए, वाकपटु उन मर्मशील ने

आशीर्वाद सुना जब उसने, शीघ्र गया उस स्थान पर
जहां पड़े थे उसके चाचा, बने हुए राख के ढेर

अंशुमान अति हुआ दुखित तब, रोने लगा शोक के वश हो
वहीं पास ही चरते देखा, यज्ञ संबंधी उस अश्व को

महातेजस्वी अंशुमान ने, जलांजलि देनी चाही तब
देखा आसपास जाकर, नहीं जलाशय दिखा वहाँ पर

दृष्टि को फैलाकर देखा, पक्षिराज गरुड़ को पाया
वेगवान थे जो वायु सम, थे चाचाओं के जो मामा

विनतानंदन कहा गरुड़ ने, करो शोक न, पुरुष सिंह हे !
हुआ राजकुमारों का वध, मंगल हेतु सर्व जगत के

मुनि कपिल ने दग्ध किया है, जो अत्यंत तेजवान हैं
लौकिक जल की अंजलि देना, इनके लिए नहीं उचित है

हिमवान की ज्येष्ठ पुत्री जो, गंगा जी का जल है पावन
उस जल से आप्लावित कर दो, उस जल से ही उचित तर्पण

लोकपावनी गंगा जल से, भीगेगी जब भस्मराशि ये  
स्वर्गलोक तब जा पहुंचेंगे, साठ हजार सगर पुत्र वे

घोडा लेकर अब जाओ तुम, यज्ञ पूर्ण हो पितामह का
अंशुमान सुन बात गरुड़ की, लेकर अश्व लौट आया

यज्ञ हेतु जो हुए थे दीक्षित, राजा सगर से बात कही सब
पूर्ण किया यज्ञ नियम से, सुना भयंकर समाचार जब

लौटे राजधानी को अपनी, बहुत विचार किया गंगा हित
कोई मार्ग नहीं सूझा, पहुंचे नहीं किसी निश्चय पर

तीस हजार दीर्घ वर्षों तक, राज्य किया सगर राजा ने
स्वर्गलोक तब चले गये, बिना किसी उपाय तक पहुंचे


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में एकतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.





1 comment:

  1. वाह ! अद्भुत ब्लॉग है, आपका ! पहली बार ही आना हुआ है यहाँ ! एक अलग सा अनुभव, सच में सुंदर ! :)

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