श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
षड्विंशः सर्गः
श्रीराम द्वारा ताटका वध
जोश भरे ये वचन मुनि के, सुन बोले उत्तम व्रती राम
पिता की यह आज्ञा है मुझको, वचन आपके सदा प्रमाण
हो निशंक मैं माँनू उनको, जो आदेश आपका होगा
पिता का वह उपदेश स्मरण कर, मैं ताटका वध करूंगा
गौ, ब्राह्मण, तथा देश का, हित करने का मैं इच्छुक
अनुपम मुनिवर ! आप कहें जो, कार्य पूर्ण करने को उत्सुक
धनुष संभाला मध्य भाग से, ऐसा कहकर वीर राम ने
प्रत्यंचा पर दी टंकार, गूँज उठीं सम्पूर्ण दिशायें
उस शब्द को सुनकर काँपे, प्राणी सभी ताटका वन के
पहले हुई अधीर ताटका, फिर दौड़ी वह क्रोध में भरके
अति विशाल काया थी उसकी, मुखाकृति भी विकृत सी
अति क्रोध में भरी हुई थी, जब श्रीराम ने दी दृष्टि
कैसा दारुण और भयंकर, इस निशाचरी का है
तन
कहा लक्ष्मण से राम ने, दर्शन से भयभीत हों जन
मायाबल से दुर्जय है यह, इसे पराजित करूंगा मैं
स्त्री होने से रक्षित है, नष्ट करूं गति को इसकी मैं
श्रीराम ने कहा ही था, जब आयी वहीं ताटका भीषण
एक हाथ उठाकर दौड़ी, की गर्जना उसने दारुण
मुनि ने तब हुंकार भरी, विजय कामना की राम की
धूल उड़ाना शुरू किया तब, दोनों पर ताटका ने भी
पल भर लख धूल के बादल, मोह में पड़े थे
दोनों भाई
आश्रय ले माया का उसने, तब पत्थर की वर्षा बरसाई
बाणों की वर्षा के द्वारा, रोक दिया शिलाओं को जब
आती हुई उस निशाचरी के, काट दिए दो हाथ थे तब
दोनों भुज कट जाने से, थकी ताटका करती गर्जन
नाक-कान भी काट लिए तब, कुपित हुए सुमित्रा नन्दन
क्षमा करें... सूचना पुनः दे रहा हूं...
ReplyDeleteसुंदर रचना...
आप की ये रचना आने वाले शनीवार यानी 7 सितंबर 2013 को ब्लौग प्रसारण पर लिंक की जा रही है...आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
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मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]
कुलदीप जी, आभार !
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteप्रतिभा जी, स्वागत व आभार !
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