श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
त्रयोदशः सर्गः
राजा का वसिष्ठ से यज्ञ की तैयारी के लिए अनुरोध,
वसिष्ठ जी द्वारा इसके लिए सेवकों की नियुक्ति और सुमन्त्र को राजाओं की बुलाहट ले
लिए आदेश, समागत राजाओं का सत्कार तथा पत्नियों सहित राजा दशरथ का यज्ञ की दीक्षा
लेना
वर्तमान वसंत बीता जब, पुनः वसंत के दिन आए
अश्वमेध की दीक्षा लेने, राजा मुनि के निकट ध्याए
पूजन, नमन किया वसिष्ठ का, विनययुक्त यह बात कही
शास्त्र विधि से यज्ञ कराएँ, विघ्ननिवारण करें, हे मुनि !
स्नेह आपका मुझे मिला है, हे सुह्रद, गुरु, परम महान
वहन आप ही कर सकते है, यज्ञ भार जो पड़ा है आन
कहा मुनि ने ‘हाँ’ राजा को, पूर्ण प्रार्थना होगी उसकी
अति निपुण शिल्पीजन संग, कई बुलाए पंडित, ज्योतिषी
सेवक, बढई, कारीगर भी, बहुश्रुत, शास्त्र वेत्ता भी आयें
यज्ञ कर्म का हो प्रबंध, हर एक को कार्य बताए
कई हजार ईंटें मंगवायें, राजाओं हित महल बनायें
अन्न-पान, भोजन से युक्त, ब्राह्मण हित भी घर बनवायें
पुरवासी भी ठहरें जिसमें, भूपालों हित आश्रय हों
अश्व और गजों के हित, समुचित सुंदर शालाएं हों
छावनियाँ सैनिकों हित हों, जो विदेश से आए हों
भोजन की
हो प्रचुर व्यवस्था, साधारण जन भी पायें
विधिपूर्वक ससम्मान, नगरवासी भी भोजन पायें
नहीं किसी का हो अनादर, शिल्पी भी आदर पायें
जो सेवक, कारीगर धन से, सम्मानित होते हैं सादर
वे मेहनत से कर्म करेंगे, काम भी होगा उनसे सुंदर
बहुत सुन्दर चित्रण...आभार
ReplyDeleteकैलाश जी व प्रेम जी आपका स्वागत व आभार !
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