Friday, September 7, 2012

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


की अगवानी तब राजा ने, बहुत विनय के साथ ऋषि की
साष्टांग प्रणाम किया तब, मस्तक टेक के फिर विनती की

आप पिता के संग प्रसन्न हों, कृपा का प्रसाद मुझे दें
क्रोधित न हों ऋषि जानकर, अंतः पुर में उन्हें ले गए

शांतचित्त से विधिपूर्वक, ब्याह किया शांता का उनसे
ऋश्यश्रंग हो पूजित उनसे, पत्नी के संग वहीं रह गए

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में दसवाँ सर्ग पूरा हुआ

एकादश सर्गः

सुमन्त्र के कहने से राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शांता और ऋष्यश्रंग को अपने घर ले जाना

तब सुमन्त्र ने कहा नरेश से, हित की बात सुनें मुझसे
ऋषियों से जिसे कहा था, श्रेष्ठ देवों में सनत्कुमार ने

कहा उन्होंने इक्ष्वाकुवंश में, दशरथ नामके राजा होंगे
उनकी बड़ी मित्रता होगी, अंगदेश के इक राजा से

रोमपाद नाम है उसका, शांता नामक पुत्री होगी
ऋष्यश्रंग आ यज्ञ करा दें, दशरथ उनसे करेंगे विनती

वंश चलेगा जिससे मेरा, पुत्र प्राप्ति होगी मुझको
मन ही मन करके विचार तब, संग भेज देंगे ऋषि को

चिन्ता दूर होगी राजा की, यज्ञ का अनुष्ठान करेंगे
द्विजश्रेष्ठ मुनि का तब वे, पुत्र, स्वर्ग हित वरण करेंगे

चार पुत्र होंगे राजा के, विख्यात व बड़े पराक्रमी
अप्रमेय, बड़े प्रतापी, जिनसे वंश मर्यादा बढ़ेगी 

3 comments:

  1. आभार अनीता जी,
    आपकी रचनाएँ पढ़ी है मैंने, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण की यह प्रस्तुती भी आपके शब्दों में
    पढ़कर अच्छी लगी आभार ...

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  2. लगता है आपके ब्लॉग पर रोज आना पडेगा .....

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  3. ज्ञानवर्धक
    बहुत बढिया

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