Wednesday, June 20, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् चतुर्थ सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


चतुर्थ सर्ग

महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान सुनाना

वन से लौट लिया राम ने, शासन जब अपने हाथों में
उनके चरित्र पर आधारित, रचा काव्य कवि वाल्मीकि ने

चौबीस हजार श्लोक थे जिसमें, सर्ग पांच सौ, सात कांड
विचित्र अर्थ व पद युक्त था, शामिल उत्तर व भविष्य कांड

ज्ञानी कवि ने किया विचार तब, कौन शक्तिशाली होगा
महाकाव्य को सुना सके जो, ऐसा नर कौन होगा

शुद्द अन्तकरण था जिनका, महर्षि ने जब किया विचार
चरणों में आकर झुक गए तब, लव-कुश दोनों राजकुमार

दोनों थे धर्म के ज्ञाता, स्वर था मधुर, यशस्वी थे
धारणा शक्ति अद्भुत थी उनकी, वेदों में पारंगत थे

3 comments:

  1. चौबीस हजार श्लोक थे जिसमें, सर्ग पांच सौ, सात कांड
    विचित्र अर्थ व पद युक्त था, शामिल उत्तर व भविष्य कांड ..

    नमन है ऐसे ऋषिवर को ...

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  2. नमन इस महान ग्रन्थ के रचियता को...

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  3. संक्षिप्त और अति सुन्दर प्रस्तुति .

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