श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अरण्यकाण्डम्
पञ्चम: सर्ग:
श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना,
देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना
तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन
अति रमणीय इस वन प्रांत के, एक पवित्र स्थान पर रहते
वही करेंगे प्रबन्ध निवास का, उनके निकट चले जायें
लघु नावों से पार हो सके, उस मंदाकिनी के स्रोत की
विपरीत दिशा में चलते जायें, पा लेंगे राह लक्ष्य की
किंतु रुकें दो घड़ी यहाँ, केंचुल तज दे उस सर्प की भाँति
जरा जीर्ण अंगों को तज दूँ, तब तक पाऊँ आपकी दृष्टि
कहकर ऐसा शरभङ्ग मुनि ने, विधिवत् अग्नि की थी स्थापित
मंत्रोच्चार कर दी आहुति, स्वयं उसमें हो गये प्रतिष्ठित
रोम, केश, त्वचा, हड्डियाँ व, मांस, रक्त आदि भस्म हो गये
अग्नितुल्य कुमार रूप में, अग्नि ऊपर वह प्रकट हो गये
अग्निहोत्री पुरुषों, मुनियों के, देवों के भी लोक लांघकर
ब्रह्म लोक जा हुए कृतज्ञ वे, ब्रह्मा जी के दर्शन पाकर
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्डमें पाँचवाँ सर्ग पूरा हुआ।
अत्यन्त सुन्दर काव्य निबंधन मन में भक्तिभाव का संचार कर उसे राम के आनंद में भावविभोर कर देता है ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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