Sunday, November 10, 2024

श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

 चतुर्थ सर्ग:


श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध 


जब मैंने विनती की उनसे, की चेष्टा प्रसन्न करने की 

 बोले महायशस्वी कुबेर,  शाप मुक्त करेंगे राम ही 


दशरथ नंदन श्रीराम जब, युद्ध में वध तुम्हारा करेंगे

तब पहले स्वरूप को पाकर, स्वर्गलोक को प्राप्त करोगे 


 मैं रम्भा में था अति आसक्त, समय पर पहुँच नहीं पाया 

शाप दिया कुपित कुबेर ने, मुक्ति उपाय भी साथ बताया 


आज आपकी ही कृपा से, भीषण शाप से मुक्त हुआ हूँ 

हो कल्याण आपका रघुवर, अब मैं स्वर्गलोक जाता हूँ 


इस वन से डेढ़ योजन दूर, महामुनि शरभंग हैं रहते 

उनके पास शीघ्र जाइए, वह कल्याण की बात कहेंगे 

  

गड्ढे में गाड़कर यह काया, आप शीघ्र यहाँ से जायें 

मृत राक्षसों को दफ़नाना, सनातन धर्म है उनके लिए


जो राक्षस दबाए जाते, उन्हें सनातन लोक मिलता है 

श्रीराम से ऐसा कहकर वह, शरीर छोड़कर चला गया 


उसकी बात सुन कर राम ने, लक्ष्मण को फिर से दी आज्ञा 

लेकर फावड़ा तब लक्ष्मण ने, निकट विशाल गह्वर खोदा 


तब अति भयानक ध्वनि निकाली, कंठ को छोड़ा जब राम ने

खूँटे जैसे कान थे जिसके, डाल दिया उसे गह्वर में 


अति पराक्रमी व धैर्यवान थे, दोनों  भाई राम-लक्ष्मण 

क्रूर कर्म करने वाले महा, राक्षस का किया था मर्दन 


गढ्ढे को मिट्टी से पाटा, उस राक्षस का वध कर डाला 

जिसे श्रीराम के हाथों से, हठपूर्वक मरना अभीष्ट था


हो मनोवांछित मृत्यु की प्राप्ति, बता दिया था श्रीराम को 

शस्त्र से वध नहीं हो सकता, इसीलिए खोदा गड्ढे को 


निर्भय होकर फिर उस वन में, वे हर्षित  विचरा करते थे 

जैसे  नभ में सूर्य, चंद्रमा, वैसे ही शोभा पाते थे 



 इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्डमें चौथा सर्ग पूरा हुआ।  


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