Tuesday, June 27, 2023

अंत:पुर में प्रवेश करके भरत का दुखी होना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

चतुर्दशाधिकशततम: सर्ग: 


भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा

अंत:पुर में प्रवेश करके भरत का दुखी होना 


विशाल धनुष की प्रत्यंचा ज्यों, वेगशाली तीर से कटी

स्थान भ्रष्ट दिखाई देती, उसके समान अयोध्या पुरी 


युद्धकुशल किसी घुड़सवार ने, जिस घोड़ी पर की सवारी 

सहसा शत्रु से हत हुई, वैसे ही अयोध्या नगरी थी 


दशरथ नंदन कुमार भरत, कहते वचन सारथि सुमंत्र से 

गीत और संगीत नहीं हैं, पूर्व की भाँति नाद न सुनते 


मधु की मादक गंध नहीं है, चंदन व अगरू नहीं महकें 

नहीं सवारियों की आवाज़ें,  अश्व औ’ गज नहीं चिंघाड़ें  


श्रीराम वनवास के कारण, तरुण सभी यहाँ संतप्त हैं 

पुष्पमाल ग्रहण नहीं करते, फूलों का अति ही अभाव है 


उत्सव आदि बंद हो गये, सारी शोभा विनष्ट हुई है 

भाई संग उल्लास गया, अयोध्या न शोभित होती है 


अब कब राम पधारेंगे पुन, महोत्सव की भाँति  नगर में 

ग्रीष्म ऋतु के मेघ की भाँति, ख़ुशियों का संचार करेंगे 


बड़ी-बड़ी सड़कें नगरी की, हर्षित जन को नहीं देखतीं 

इस प्रकार बात करते वे, राजा के राजमहल में गये 


सिंह से रहित गुफा की भाँति, राजा दशरथ से विहीन था 

सूर्य हीन दिवस की भाँति, शोक में डूबा  शोभारहित   था 


स्वच्छता व सजावट से विहीन, देख अयोध्या नगरी को 

 धैर्यवान थे बहुत भरत, पर, अश्रु बहाने लगे दुखी हो  


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में 

एक सौ चौदहवाँ सर्ग पूरा हुआ.




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