Monday, May 31, 2021

भरत का पुनः श्रीराम से राज्य ग्रहण करने का अनुरोध


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्

द्व्यधिकशततम: सर्ग: 


भरत का पुनः श्रीराम से राज्य ग्रहण करने का अनुरोध करके उनसे पिता की मृत्यु का समाचार बताना 


श्रीराम की बात सुनी तो, उत्तर दिया भरत ने ऐसे 

नहीं राज्य का अधिकारी, लाभप्रद उपदेश हो कैसे 


सदा से इस शाश्वत धर्म का, पालन होता आया कुल में 

छोटा पुत्र बने नहीं राजा, रहते हुए ज्येष्ठ पुत्र के 


समृद्धिशालिनी पुरी अयोध्या, चलिये आप साथ हमारे 

कुल के अभ्युदय की खातिर, राजा का पद सहर्ष स्वीकारें 


यद्यपि राजा को मानव मानें, किन्तु वह स्थित देवत्व में 

धर्म, अर्थ युक्त आचरण उसका, सम्भव न सामान्य जन से 


जब मैं था कैकय देश में, वन को आप चले आये थे 

अश्वमेधी, सम्मानित राजा, स्वर्गलोक को चले गए 


सीता और लक्ष्मण के संग, अयोध्या से जब निकले आप 

दुःख-शोक से पीड़ित होकर, महाराज ने त्यागे थे  प्राण 


जलांजलि पिता को देने, उठिये हे पुरुषसिंह श्रीराम

मैं व शत्रुघ्न पहले ही, दे चुके हैं जलांजलि का दान 


कहते हैं यह जल प्रिय पुत्र का, पितृलोक में अक्षय होता 

आप पिता के प्रिय पुत्र हैं, अलगाव न सह पाए आपका 


शोक के कारण रुग्ण हुए, आपके दर्शन की इच्छा ले 

आप में लगी हुई बुद्धि को, स्मरण आपका ही वे करते 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में 

एक सौ दोवाँ सर्ग पूरा हुआ.



 

2 comments:

  1. भाई हो तो भरत सा, आज ऐसे भाई मिलना दुर्लभ हैं

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. सादर अभिनंदन।

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