Friday, April 30, 2021

श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः

श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अयोध्याकाण्डम्.


शततम: सर्ग: 


श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना


नाना प्रकार के अश्वमेध, महायज्ञ के स्थान हैं बने 

देवस्थान, पौंसले, सरवर, शोभा जिसकी सदा बढ़ाते


सदा प्रसन्न जहां नागरिक,  मनाते हैं उत्सव, आयोजन 

हिंसा जहां नहीं होती है, खेती के लिए अधिक पशु धन 


खेती के लिए वर्षा जल पर, निर्भर नहीं रहना पड़ता 

नाना प्रकार की खानें हैं, जहाँ नहीं कोई भय बसता


पूर्वजों ने सदा ही जिसकी, भली-भांति सुरक्षा की है 

वह अपना प्रिय कोसल देश, धन-धान्य से सम्पन्न तो है


खेती और गोरक्षा से, निज आजीविका जो चलाते 

व्यापर में सलंग्न वैश्य, सदा प्रीतिपात्र तो हैं तुम्हारे


उनके श्रम से ही लोक सुखी, और उन्नतिशील बनता है 

उनके इष्ट की करा प्राप्ति, अनिष्ट निवारण तो होता है 


भरण-पोषण तो तुम उनका, धर्मानुसार सदा करते हो 

क्या वे सदा सुरक्षित रहतीं, स्त्रियों को सन्तुष्ट रखते हो 


विश्वास रख उनके ऊपर, गुप्त बात तो नहीं कह देते

हाथी जहाँ उत्पन्न होते, वे जंगल तो सुरक्षित रखते 


कमी तो नहीं उन गौओं की, अधिक दूध देने वाली जो 

हाथी, हथिनियों व अश्वों के, संग्रह से तो तृप्त नहीं हो


क्या तुम पूर्वाह्न काल में, वस्त्राभूषणों से हो सुसज्जित 

नगरवासियों को देते दर्शन, प्रधान सड़क पर जाकर नित 


अति निडर हो तुम्हारे सम्मुख, कर्मचारी तो नहीं आते 

अथवा वे सब भय के कारण, तुमसे दूर-दूर ही रहते 


मध्यम स्थिति का अवलंबन ही, अर्थसिद्धि का कारण होता 

आय अधिक, व्यय कम तो नहीं, धन अपात्र को तो नहीं मिलता 


धनधान्य, अस्त्र-शस्त्र, जल, शिल्पी तथा धनुर्धरों आदि से 

सभी तुम्हारे दुर्ग और किले, भरपूर सदा हैं रहते 


देव, पितृ, ब्राह्मण, अभ्यागत, योद्धा, मित्रों की खातिर ही 

धन व्यय होता है तुम्हारा, बेकार कभी जाता तो नहीं 


श्रेष्ठ व निर्दोष पुरुष पर,यदि कोई मनुष्य दोष लगाता

बिना जाँच कराये लोभ वश, दंड तो नहीं दिया जाता 


चोरी में जो गया हो पकड़ा, प्रमाण भी यही मिला हो 

 छोड़ते तो नहीं लोभ से,  राज्य में ऐसे किसी चोर को 


विवाद छिड़ा हो न्यायालय में, यदि कोई धनी व निर्धन में

धन के लोभ को तजकर उसपर, मंत्री तो विचार हैं करते 


 

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