श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
एकत्रिंश सर्गः
श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा
मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम
कृतकृत्य हुए राम-लक्ष्मण, यज्ञ शाला में किया शयन
दोनों वीर प्रसन्न अति थे, उर उल्लास से था परिपूर्ण
प्रातः काल में दोनों भाई, नित्य-नियम पूरा करके
साथ-साथ जा निकट मुनि के, कर प्रणाम ये वचन कहे
आज्ञा दें अब जो करना है, सेवा में हम हैं आपकी
उन दोनों के कहने पर ये, बोले तब मुनिवर तेजस्वी
मिथिला के राजा जनक का, परम धर्ममय यज्ञ हो रहा
मेरे साथ तुम्हें चलना है, एक धनुष अद्भुत है वहाँ
फलरूप में किसी यज्ञ के, माँगा था मिथिला नरेश ने
हो प्रसन्न प्रदान किया था, शंकर सहित देवताओं ने
पूर्वकाल में कभी पधारे, धनुष दिया था देवों ने वह
अति भयंकर, प्रकाश मान, अति प्रबल, और भारी वह
मानव की तो बात क्या करें, देव, असुर या हों राक्षस
प्रत्यंचा उस महा धनुष की, हैं असमर्थ चढ़ाने में सब
कितने राजा, राजकुमार भी, पता लगाने आगे आये
शक्ति का न पार पा सके, प्रत्यंचा चढ़ा न पाए
वहाँ चलोगे पुरुष सिंह तुम, देख सकोगे धनुध यज्ञ वह
मध्यभाग अति सुंदर है, जिससे पकड़ा जाता है वह
atulniya
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअति सुन्दर कथात्मक विवरण।
ReplyDeleteआदित्य जी, कुसुमेश जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
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