Tuesday, June 12, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् तृतीयः सर्गः


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्


तृतीयः सर्गः
वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख 

सुग्रीव हित क्रोध राम का, वानर सेना का संग्रह
सुग्रीव का सेना भेजना, देना स्थानों का परिचय

सीता के विश्वास हेतु, हनुमान को देना अंगूठी
स्वयंप्रभा गुफा का दर्शन, प्राणत्याग की इच्छा उनकी

सम्पाती से भेंट सेना की, महेंद्र पर्वत पर कपि का जाना
मैनाक का दर्शन उनको, हनुमान का समुद्र लांघना

सिहिंका का दर्शन व निधन, त्रिकुट पर्वत पर जाना
रात्रि समय लंका प्रवेश, विचार कर्त्तव्यों का करना

रावण के अंतःपुर जाना, रावण व पुष्पक का दर्शन
अशोक वाटिका में आकर, सीता जी का शुभ दर्शन

सीता को अंगूठी देना, राक्षसियों का क्रोध दिखाना
त्रिजटा का स्वप्न शुभकारी, सीता का चूड़ामणि देना

कपि का वृक्षों का तोड़ना, राक्षसियों का भागना
रावण के सेवकों का, हनुमान से मारा जाना

हनुमान का बंदी होना, गर्जन और दाह लंका का
लौटकर समुद्र लांघना, मधुबन में पान मधु का

सीता की चूड़ामणि देकर, आश्वासन राम को देना
सेना सँग सुग्रीव के साथ, नल द्वारा सेतु बांधना

सेतु द्वारा सागर पार, लंका पर चहुँ घेरा डालना
विभीषण सँग मैत्री सम्बन्ध, रावण वध का उपाय बताना

कुम्भकर्ण, मेघनाथ वध, रावण का विनाश भीषण
अभिषेक विभीषण का, पुष्पक विमान का अवलोकन

दल-बल सहित अयोध्या जाना, भरद्वाज मुनि से मिलना
हनुमान को दूत बना कर, भ्राता भरत के पास भेजना

वानर सेना की विदाई, राज्यभिषेक श्रीराम का
राष्ट्र को रखना प्रसन्न, प्रजा हित त्याग सीता का


इन सब वृतांतों को रचा, और जो कुछ भी भावी था
वाल्मीकि ने रचा काव्य में, उत्कृष्ट यह महाकाव्य था

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकिये आदिकाव्ये बाल कांडे तृतीयः सर्गः.

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