श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अरण्यकाण्डम्
पञ्चम: सर्ग:
श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना,
देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना
तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन
जो इस रथ के दोनों ओर, खड्ग ले सौ-सौ वीर खड़े हैं
वक्ष विशाल, भुजाएँ बलवान, वस्त्र लाल, व्याघ्र समान हैं
पच्चीस वर्ष सम लगते, गले में सुंदर हार धारा है
देव सदा ऐसे ही रहते, दर्शन इनका अति प्यारा है
लक्ष्मण! जब तक मैं यह जानूँ, रथ पर है कौन विराजमान
तुम ठहरो सीता के साथ, कहकर राम कर गये प्रस्थान
मुनि आश्रम पहुँचते जब तक, इसके पूर्व ही देख इंद्र ने
जाता हूँ, कहा मुनि से, मिलना नहीं है अभी श्रीराम से
जो दूजों के लिए कठिन है, इन्हें महान कर्म करना है
रावण को पराजित करके, निज कर्त्तव्य पूरा करना है
विजयी हुए कृतार्थ राम के, तब आऊँगा दर्शन करने
अनुमति लेकर शरभङ्ग मुनि से, इंद्र लगे थे वहाँ से चलने
बैठ समीप अग्नि के मुनि जब, अग्निहोत्र यज्ञ करते थे
सीता व लक्ष्मण के साथ मिल, श्री राम वहाँ आ पहुँचे
कर प्रणाम मुनि चरणों में, उनकी आज्ञा से वहाँ बैठे
इंद्र के आने का कारण क्या, पूछा उनसे श्रीराम ने
ब्रह्म लोक ले जाने आये, वरदाता यह इंद्र मुझे
इंद्रियों पर कर नियंत्रण, विजय पायी है तप से अपने
किंतु मुझे जब ज्ञात हुआ कि, आप यहाँ आने हैं वाले
निश्चय किया। नहीं जाऊँगा, बिना आपके दर्शन पाये
धर्म परायण आप महात्मा, आपको मैं निवेदन करता
स्वर्ग व ब्रह्म लोक जो जीते, उन्हें आपको अर्पित करता
सुनकर बात शरभङ्ग मुनि की, कहा शास्त्रज्ञाता राम ने
कराऊँगा मैं ही आपको , दर्शन स्वर्ग औ' ब्रह्मलोक के
इस समय मैं आपसे पूछूँ, वन वास हेतु बतायें स्थान
कुछ दूरी पर हैं मुनि सुतीक्ष्ण, मुनिवर ने कराया यह ज्ञान