Wednesday, November 19, 2025

वानप्रस्थ मुनियों का अपनी रक्षा के लिए श्रीरामचंद्र जी से प्रार्थना करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अरण्यकाण्डम्


षष्ठ: सर्ग:


वानप्रस्थ मुनियों का राक्षसों के अत्याचारों से अपनी रक्षा के लिए श्रीरामचंद्र जी से प्रार्थना करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देना 


ब्रह्मलोक प्रस्थान किया जब, द्विजश्रेष्ठ मुनि शरभङ्ग ने 

मुनियों के समुदाय आये, श्रीरामचंद्र जी से मिलने 


ब्रह्माजी के नख से उपजे, वैखानस उनमें शामिल थे 

बालखिल्य,बालों से उपजे, पत्राहार व वायुभक्ष थे   


कुछ भी बचा न रखते थे जो, संप्रक्षाल मुनि भी आये 

सूर्य, चन्द्र, रश्मियों का पान, मरीचि मुनीजन करते थे 


कच्चे अन्न को कूट कर खाते, अश्मकुट्ट व सलिलाहारी 

दाँतों से ले ऊखल का काम, संग आये दंतोलूखली 


जल में कंठ तक डूबे रहकर, उन्मज्जक तपस्या करते 

बिना बिछौने सोने वाले, गात्रशय्या वहाँ आये थे 


तपोनिष्ठ, पंचाग्नि सेवी, आर्द्रपटवासा मुनीजन भी थे 

ऊर्ध्ववासी, स्थांडिलशायी, आकाशनिलय, दान्त आये थे 


 ब्रह्मतेज से संपन्न थे वे, योग से मन एकाग्र हुआ 

धर्म के ज्ञाता श्रीराम संग, उनका यह संवाद हुआ  


इक्ष्वाकु वंश के ही नहीं, भूमंडल के स्वामी हैं आप 

देवों के नरेश ज्यों इंद्र, सभी मनुष्यों के राजा आप 


अपनी कीर्ति वपराक्रम से ही,तीनों लोकों में विख्यात 

पितृ भक्त और  सत्य निष्ठ भी, सभी धर्म हैं आपको ज्ञात 


निज स्वार्थ सिद्धि हेतु ही, हम सभी आपके सम्मुख आये 

क्षमा चाहते हैं पहले ही, बन प्रार्थी निवेदन लाये 


राजा यदि प्रजा से अपनी, छठा भाग कर में लेता है 

किंतु करे न रक्षा उसकी, अधर्म का भागी होता है 


पुत्र समान प्रजा का पालन, यदि कोई राजा करता है 

अक्षय कीर्ति जगत में पाये, ब्रह्मलोक तक वह जाता है 


मुनि जन फल-मूल ग्रहण कर, उत्तम धर्म का करें अनुष्ठान 

चौथा भाग उस शुभधर्म का, प्रजा रक्षक नरेश को प्राप्त 


  


Thursday, October 30, 2025

शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन


श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अरण्यकाण्डम्


पञ्चम: सर्ग:


श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना,

देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना

तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  



अति रमणीय इस वन प्रांत के, एक पवित्र स्थान पर रहते 

वही करेंगे प्रबन्ध निवास का, उनके निकट चले जायें 


लघु नावों से पार हो सके, उस मंदाकिनी के स्रोत की 

विपरीत दिशा में चलते जायें, पा लेंगे राह लक्ष्य की 


किंतु रुकें दो घड़ी यहाँ, केंचुल तज दे उस सर्प की भाँति 

जरा जीर्ण अंगों को तज दूँ, तब तक पाऊँ आपकी दृष्टि 


कहकर ऐसा शरभङ्ग मुनि ने, विधिवत् अग्नि की थी स्थापित 

मंत्रोच्चार कर दी आहुति, स्वयं उसमें हो गये प्रतिष्ठित 


रोम, केश, त्वचा, हड्डियाँ व, मांस, रक्त आदि भस्म हो गये 

अग्नितुल्य कुमार रूप में, अग्नि ऊपर वह प्रकट हो गये 


अग्निहोत्री पुरुषों, मुनियों के, देवों के भी लोक लांघकर 

ब्रह्म लोक जा हुए कृतज्ञ वे, ब्रह्मा जी के दर्शन पाकर 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्डमें पाँचवाँ सर्ग पूरा हुआ।  

 



  


Monday, July 28, 2025

श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका मुनि से सम्मानित होना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः


श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्

अरण्यकाण्डम्


पञ्चम: सर्ग:


श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना,

देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना

तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  


जो इस रथ के दोनों ओर, खड्ग ले सौ-सौ वीर खड़े हैं 

वक्ष विशाल, भुजाएँ बलवान, वस्त्र लाल, व्याघ्र समान हैं 


पच्चीस वर्ष सम लगते, गले में सुंदर हार धारा है 

देव सदा ऐसे ही रहते, दर्शन इनका अति प्यारा है 


 लक्ष्मण! जब तक मैं यह जानूँ, रथ पर है कौन विराजमान

तुम ठहरो सीता के साथ, कहकर राम कर गये प्रस्थान 


मुनि आश्रम पहुँचते जब तक, इसके पूर्व ही देख इंद्र ने 

जाता हूँ, कहा मुनि से, मिलना नहीं है अभी श्रीराम से 


 जो दूजों के लिए कठिन है, इन्हें महान कर्म करना है

रावण को पराजित करके, निज कर्त्तव्य पूरा करना है 


विजयी हुए कृतार्थ राम के, तब आऊँगा दर्शन करने

अनुमति लेकर शरभङ्ग मुनि से, इंद्र लगे थे वहाँ से चलने 


बैठ समीप अग्नि के मुनि जब, अग्निहोत्र यज्ञ करते थे 

सीता व लक्ष्मण के साथ मिल, श्री राम वहाँ आ पहुँचे 


कर प्रणाम मुनि चरणों में, उनकी आज्ञा से वहाँ बैठे 

इंद्र के आने का कारण क्या, पूछा उनसे श्रीराम ने 


ब्रह्म लोक ले जाने आये, वरदाता यह इंद्र मुझे 

 इंद्रियों पर कर नियंत्रण, विजय पायी है तप से अपने


किंतु मुझे जब ज्ञात हुआ कि, आप यहाँ आने हैं वाले

 निश्चय किया। नहीं जाऊँगा, बिना आपके दर्शन पाये 


धर्म परायण आप महात्मा, आपको मैं निवेदन करता 

स्वर्ग व ब्रह्म लोक जो जीते, उन्हें आपको अर्पित करता 


सुनकर बात शरभङ्ग मुनि की, कहा शास्त्रज्ञाता राम ने

  कराऊँगा मैं ही आपको , दर्शन स्वर्ग औ' ब्रह्मलोक के 


इस समय मैं आपसे पूछूँ, वन वास हेतु बतायें स्थान

कुछ दूरी पर हैं मुनि सुतीक्ष्ण, मुनिवर ने कराया यह ज्ञान