Thursday, April 26, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


पीत वर्ण सुवर्ण सम जिसका, सुग्रीव ने की गर्जना
महानाद सुन वाली निकला, तारा को देकर सांत्वना

युद्ध हुआ दोनों वीरों में, राम ने वाली मार गिराया
सुग्रीव को दिया सिंहासन, बना नरेश उसे बिठाया

सभी वानरों को भेजा फिर, सुग्रीव ने चार दिशा में  
निकल पड़े हजारों वानर, जानकी का पता लगाने

हनुमान को दी प्रेरणा, सम्पाति नामक गृध ने  
सौ योजन विस्तार सिंधु का, लाँघा कूदकर वीर कपि ने

रावण पालित लंकपुरी में, चिंतामग्न विराजें सीता
अशोकवाटिका में बैठी थीं, जब हनुमान ने उनको देखा

दे अपनी पहचान उन्हें, दिया संदेशा राम का
विदेहनन्दिनी को दी सांत्वना, तोड़ा द्वार वाटिका का

सेनानायक पांच हत हुए, सात मंत्री कुमारों सहित
मृत हुआ अक्षय कुमार जब, बंधे कपि स्वयं राम हित

ब्रह्मा जी का था वरदान, ब्रह्म पाश से मुक्त हो सकें
स्वेच्छा से दोष स्वीकारा, राक्षसों द्वारा सहज बंधे

आग लगायी लंका को तज, मिथिलेश कुमारी के स्थान को  
लौट गए फिर महाकपि, प्रिय संदेश सुनाने राम को 

Sunday, April 22, 2012

सुग्रीव से मिलन


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


सुग्रीव से मेल कराया, हनुमान ने महा राम का
कहा सभी वृत्तांत उसे, विशेषतया सीता हरण का

पूरी बात सुनी राम की, सुग्रीव ने प्रेम जताया
अग्नि को साक्षी बनाकर, मित्रता का प्रण उठाया

वाली के सँग वैर हुआ है, स्नेहवश फिर कहा राम से
दुखी देख कर की प्रतिज्ञा, वाली के वध की राम ने

वाली के बल का वर्णन तब, सुग्रीव ने किया सशंक
राम के बल का ज्ञान नहीं था, नहीं हुआ था वह निशंक

दुन्दुभी की देह दिखलाई, जो विशाल थी पर्वत जैसी
राम जान लें, बली है वाली, उसकी यह मंशा थी ऐसी

   महाबली, महाबाहु ने देखा, हँसकर अस्थि समूह को
मात्र पैर के अंगूठे से, फेंका दस योजन दूर को  

एक बाण से बींध दिया फिर, सात ताल महावृक्षों को
सुग्रीव को विश्वास दिलाने, सँग पर्वत और रसातल को

महाकपि को हुआ भरोसा, मन ही मन प्रसन्न हुए वे
किषि्कन्धा की गुफा में गए फिर, सँग महाबाहु को लेके



Thursday, April 19, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


खबर सुनी कुटुंब वध की, अति क्रोध से हुआ मूर्छित
रावण नामक असुर मिला, मारीच से सहायता हित

समझाया मारीच ने उसको, राम बली हैं, विरोध न करो
किन्तु काल की प्रेरणा ही थी, टाल गया उसके वचनों को

मायावी मारीच के द्वारा, राम, लखन को दूर हटाया
स्वयं सीता का हरण किया, जटायु को मार गिराया

आहत देख जटायु को, सुन कर सीता हरण की बात
व्याकुल होकर करें विलाप, हुए शोक से पीड़ित राम

उसी शोक में डूबे रहकर, किया खग का अंतिम संस्कार
गए खोजने सीता को जब, कबंध असुर का किया संहार

मृत्यु से पहले कबंध ने, शबरी का पता बतलाया
दशरथ सुत रामने स्वयं को, सन्यासिनी के आश्रम पर पाया

शबरी ने किया पूजन उनका, थे शत्रुहन्ता, तेजस्वी राम
धर्म परायणा शबरी से मिल, पम्पासर में मिले हनुमान    

Monday, April 16, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


लौट गए जब भरत अयोध्या, सत्यप्रतिज्ञ जितेन्द्रिय राम ने  
नागरिकों से बचने हेतु, धाम बनाया दण्डक वन में

उस महान वन में राम ने, विराध राक्षस को मारा
शरभंग, सुतीक्ष्ण, अगस्त्य मुनि सँग, मिले वहाँ उनके भ्राता

एंद्र धनुष प्रसन्न हो पाया, अगस्त्य मुनि की थी विनती
जिसके बाण कभी न घटते, दो तुणीर व एक खड्ग भी

वनचरों के साथ थे रहते, सभी ऋषि मिलने आये
असुर, राक्षसों के वध हेतु, राम से थे कहने आये

दण्डक वन की अग्नि के सम, तेजस्वी थे सभी ऋषि
वचन दिया राक्षस वध का, प्रतिज्ञा की राम ने रण की

जनस्थान निवासिनी थी जो, इच्छानुसार रूप धरती थी
शूर्पणखा को किया कुरूप, जो अशोभनीय कृत्य करती थी

शूर्पणखा के कहने से जो, राक्षस गण युद्ध को आये
खर, दूषन, त्रिशिरा व अन्य, राम के हाथों मृत्यु पाए

चौदह हजार थे संख्या में जो, राक्षस जनस्थानवासी
मारे गए राम के हाथों, मृत्यु आयी थी उनकी

Thursday, April 12, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 



गुह को छोड़ गए फिर आगे, भारद्वाज मुनि के धाम
चित्रकूट पर्वत पर पहुँचे,  मुनि की आज्ञा पाकर राम

देव और गन्धर्व के सम ही, लीला करते तीनों रहते
सुंदर एक कुटीर बनाकर, वन की शोभा में थे रमते

पुत्रशोक से पीड़ित राजा, उनका बस रटते थे नाम
स्वर्ग सिधारे उसी शोक में, मुख पर था बस केवल राम

मिला राज्य भरत को लेकिन, उसे नहीं थी राज्य कामना
वन की ओर किय प्रस्थान , लौटें राम, थी यही भावना

वहाँ पहुँच सद्भावी भरत ने, कहा सत्य पराक्रमी राम से
हे धर्मज्ञ ! आप राजा हों, करूं याचना दोनों कर से

परम उदार, महा यशस्वी, महाबली, प्रसन्न मुख राम
राज्य की इच्छा न करके, पित्राज्ञा का रखा मान

चिह्न रूप में दिये खडाऊँ, आग्रह करके उन्हें लौटाया
राज्य करें वे अवधपुरी का, बड़े प्रेम से उन्हें मनाया

चरण स्पर्श किये भरत ने, इच्छा रही अधूरी मन में
प्रतीक्षा बस राम की करते, रहने लगे वे नंदी ग्राम में


   

Monday, April 9, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्



श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 


धर्म बंधन में बंधे थे राजा, सत्य वचन से कैसे डिगते
दिया राम को वास वनों का, कैकेयी को दो वर दे के

राजा के प्रण के अनुसार, कैकेयी का प्रिय करने हित
राम चल पड़े थे वन को, प्रतिज्ञा पूरी करने हित

विनयशील सुमित्रानन्दन, अति प्रिय थे जो राम को
सुबन्धुत्व का परिचय देकर, राम सँग चले थे वन को

जनकनन्दिनी सीता सुन्दरी, शुभलक्षणा, अति उत्तमा
प्राणों से बढ़कर प्रिय पत्नी, पति का हित ही जिसने चाहा

ज्यों रोहिणी चन्द्र के पीछे, सीता चलीं राम के पीछे
पिता ने भेजा सारथि अपना, पुरवासी गए उनके पीछे

श्रंगवेरपुर गंगातट पर, प्रिय निषादराज गुह पाकर
विदा किया सारथि राम ने, चारों गए नदी पार कर