Saturday, December 4, 2010

भावांजलि

रूखा-सूखा था यह जीवन
मरुथल में तुम जल बन आये !
कर्मों के बंधन में जकड़े,
अंतर्मन में मुक्ति लाए !
दीन-हीन मन कृपण बना जब
हे दयालु ! तुम कृपा बहाते,
धूल कामना की न ढक ले
ज्ञान ज्योति उर में जलाते !



मरुथल सा उर, पाहन सा मन
बरसो गहन ! रसधार बहा दो
वज्रनाद कर तड़ित ज्वाल बन
झंझावात से दिल दहला दो !

8 comments:

  1. क्या बात है,कितनी खूबसुरती से लिखा है आपने।बहुत ही उम्दा रचना है।मै भी कविता लिखता हूँ।मेरा ब्लाग हैः‍ः"काव्य कल्पना"...आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे।लिंक हैःःhttp://satyamshivam95.blogspot.com

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  2. बहुत सुन्दर....

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  3. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर ।आप भी अन्य के ब्लाग पढें और अपने विचार लिखें!

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  4. इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  5. सुन्दर रचना ! साधुवाद स्वीकार करें.

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  6. sarwparthm....thnks for ur suggest...madam,i m an engineering std.sangeet aur kavita mujhe godgifted hai..mai bas do pal me kisi v topic par likh sakta hu....matr 6 mnth me maine 300 kavitaye likhi jo ek se ek hai..blogg par bas maine kuch kavitawo ki kuch panktiya di hai...jald hi meri book publish hone wali hai...plz aap apna sahyog yu hi deti rahe....apna email mujhe de.....i will keep contact with u.....thnks

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  7. बहुत सुन्दर रचना है आप की, बहुत सारगर्भित बात कहा है आप ने |
    बहुत - बहुत शुभकामना

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  8. आभार

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